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________________ कदाचित् यह कहो कि ऊपर लिखे हुए शास्त्रों के सपनको वा ऐसे जिनागमको हम नहीं मानते, उनपर। हमारी श्रद्धा नहीं है इसीलिए हम वैसा आचरण नहीं करते तो इसका उत्तर यह है कि इन शास्त्रोंके कथनको । सागर हजारों ऋषि मुनियोंने कहा है और तुम्हारा कथन केवल एक दो आदमियोंका कहा हुआ है सो हजारों ऋषि ३०१] मुनियोंके वचन कभी मिथ्या नहीं हो सकते और उनके विरुद्ध केवल एक बो साधारण आदमियों के वचन कभी सच्चे नहीं हो सकते । जो कथन मिथ्या है वह मिथ्या ही रहता है और जो कथन यथार्थ है वह यथार्थ हो । रहता है । चन्द्रमाको कितने हो लोग सदोष कहते हैं परन्तु ऐसी झूठो निन्दासे वह सदोषी नहीं होता। यह । तो हाथी और कुसेके समान अपना-अपना स्वभाव है जो जैसा होता है वह दूसरोंको भी वैसा हो समझता है। हमने यह कथन केवल भगवानको आज्ञा माननेवालोंके लिए लिखा है न माननेवालों के लिए नहीं। वुष्ट लोग । सज्जनोंके विरुद्ध सवासे होते चले आये हैं, सो यह उमका स्वभाव मिट नहीं सकता। जो कोई जोव जिन वाणोके एक अक्षरके अर्थको भी छिपाता है वा उसका अर्थ बदल कर दूसरा करता है वह अनन्त संसारी होता है क्योंकि ऐसा करनेसे देव, गरू, धर्म और जिनागमकी आज्ञाका भंग होता है। भारी अविनय होता है। । और ऐसे जीव नरकके पात्र होते हैं । भगवानको आज्ञाको न माननेवाले ऐसे मिध्यावृष्टि जीव लड़कोंको', स्त्रियोंको, भोले-भाले अज्ञानी जीवोंको, थोड़े पढ़े-लिखे नासमझोंको, अपने बच्चोंकी चतुराई दिखला कर तथा शास्त्रोंको झूठी साक्षो दिखलाकर पूर्वाचार्योंके विरुद्ध अपने कपोल कल्पित वचन सिद्ध करते हैं। मान कषायके उदयसे उन्मत्त पुरुषके समान १. ऐसी-ऐसी मिथ्या बातें लड़कोंसे ही प्रारम्भ होती हैं छोटे-छोटे लड़के बा अनपढ़ लोग अथवा विदेशी विद्याओंको सोखनेवाले अभिमानी लोग धर्मका स्वरूप तो जानते नहीं हैं न जाभनेका प्रयल करते हैं ऐसे लोगोंको चतुर मावाचारी तोव मिध्यादृष्टि लोग अपने वचन जालसे शीघ्र ही अपने वश कर लेते हैं। २. वर्तमानमें जो अनेक नवयुवकमंडल वंगमेनस् एसोसियेशन, यार दोस्तोंके मंडल, मित्रमंडल, युवक परिषद आदि नवीन-नवीन संस्थाएँ खुली हैं वे सब इसी प्रकारको संस्थाएं हैं। कुछ खुदगर्ज लोग अपना कार्य सिद्ध करने के लिए केवल धर्मके नामपर इन संस्थाओंको खोल देते हैं परन्तु वे लोग वा वे संस्थाएं मनमाने अधर्मकी प्रवृत्तियाँ चलातो हैं। कोई विजातीय विवाह चलाता है, कोई विधवा विवाह पुष्ट करता है, कोई छुआछूत लोप करता है, कोई मूर्ति पूजाका निषेध करता है, कोई रथोत्सव आदि प्रभावनाओंको रोकता है, कोई पूर्वाचार्योंके वास्त्रोंका खण्डन करता है, कोई पुराणोंको नहीं मानता, कोई जम्बूद्वीप, नरक, स्वर्ग आदिको नहीं मानता। कहां तक कहा जाय ऐसी-ऐसो संस्थाएँ सब अधर्मका प्रचार कर रही हैं। ऐसो संस्थाओंसे बहुत सावधान रहना चाहिये । तथा अपने बालबच्चोंको बहुत दूर रखना चाहिये।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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