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________________ उनकी परीक्षासे सब हारको सच्चे रस्लोंका सिद्ध कर दिखाया। इस प्रकार यह ठग सबकी मांखों में धूल मल-1 कर उस हारके बदले सच्चे रत्नोंका मूल्य लेकर चला गया। इसी प्रकार तुम्हारे बमाये हुए नवीन-नवीन पर्यासागर शास्त्रोंके वचन हैं। दोनों में सर्वाग मठ वा एकवेश मठ अथवा एकवेश सब किसमें है। इस पंचमकालमें काल-२८० ] दोषसे वा बद्धिको हीनतासे अथवा छपस्थ ज्ञानके कारण किसोके कहने में कुछ भ्रमरूप वचन निकल जाय तो । बिना सर्वज्ञके सन्देह रहित होना कठिन है । पवि उनमें सन्देह मानकर पूर्वाचार्योंके वचनोंका लोप कर नवीन मूठो रचना की जायगो तो अनन्त संसारका बंध होगा। इसलिये तुम्हारे समान जबर्दस्ती अपना अकल्याण १ करनेवाला और कोई नहीं दिखता । यदि किसी भेषीने शास्त्रों में कहीं-कहीं झूठ लिख विधा भी हो तो जो कोई अयोग्यता वा विरुद्धता करेगा वह अपना फल पावेगा । क्योंकि इस प्रकारकी चोरी करना तो सबसे बुरा है । ऐसी चोरो लोभके पशसे करते हैं यद्यपि वे ऐसे कामोंको और उनके फलोंको परम दुःखरूप जानते हैं तथापि लोभसे उसको छोड़ नहीं सकते उनके फलोंको भोगते हए भी करते हो जाते हैं। जिन लिगियोंने जिनागमको विरुद्धता और अनंत संसारमय उसके खोटे फलको जानते हुए भी विरुद्ध वचन लिख दिये हैं उन्होंने बड़ी भारी अज्ञानता की है। पिन खो विया समझना चाहिये ऐसे लोगोंने पूजा की द्रव्य अधया भेंटमें अप्रमाण रुपये, मोहरें ली। लिखी हैं । जब ब्राह्मणों के समान भेंट लेना लिखा है तो उसमें कुछ-न-कुछ मिथ्या भी जरूर लिखा होगा परंतु, A आप लोगोंको वह भी बुरा नहीं दिखता क्योंकि मूठेको दूसरा हो झूठा दिखता है। . यदि थोड़ी देर के लिये बीच-बीच में मिलानेकी बात मान भी ली जाय तो फिर उनके बनाये हुये पहले प्रमाणमें लिखे हुए शास्त्रोंको वा अन्य शास्त्रोंको पयों पढ़ते हो? और उन्हीं शास्त्रों द्वारा अथवा उन्हीं लोगोंके द्वारा प्रतिष्ठा को हुई जिन मन्दिरोंमें विराजमान जिन प्रतिमाओंको क्यों पूजते हो? उनके शास्त्रोंका पढ़ना और उनके द्वारा प्रतिष्ठित प्रतिमाओंका पूजना भी मिथ्या मानना पड़ेगा । कदाचित् यह कहो कि हम तो ऐसा नहीं कहते पूर्वोक्त बड़े-बड़े ग्रन्थोंको अप्रमाण नहीं मानते । तो इसका उत्तर यह है कि तुम्हारे जो भाषा बनिकाके शास्त्र हैं वे पूर्वाचायोंके वचनोंके प्रत्यक्ष विरोधी हैं जो । गाया श्लोक आदि मूल आचार्योके अन्य हैं वे तो प्रमाण है हो । न्यायnalisaaTIERREER -Isra [ २८० nam
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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