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________________ बर्षासागर [२६३ ] लिया जायगा अर्थात् दान, पूजा आविसे तज्जनित आरम्भमय पाप दूर नहीं होते हैं ऐसा मान लिया जायगा। तो फिर दान, पूजाको कुछ सफलता ही नहीं रहेगी। तथा जब दान, पूजाको सफलता ही नहीं होगी तो फिर बिना कारणके उससे फलको प्राप्ति किस प्रकार हो सकेगी। इसलिये जो विधेको पुरुष है वे पहले थोड़ा-सा धनी खर्च करनेपर यदि बहत-सा लाभ होता हो तो उस कार्यको करते ही हैं इसी प्रकार ये सब पुण्य कार्य है तथा | जो कृषण हैं, अज्ञानी वा रंक हैं वे बहुतसे लाभके लिए भी अपना थोड़ा-सा धनका खर्च भी नहीं देख सकते। इसलिए वे व्यापाररहित होते हुए आगामी लाभ नहीं उठा सकते। जिस प्रकार पुष्प फलका कारण है उसी प्रकार पूजा, वान आदि आरम्भोंसे होनेवाला थोड़ा-सा पाप भी महापुण्यका कारण है। जो मनुष्य पुष्पको देख कर उसीको बुढ़तापूर्वक पकड़ लेता है और फलको छोड़ देता है यह अत्यन्त मूर्ख गिना जाता है क्योंकि वह पुष्प भी अधिक दिन तक नहीं ठहरता थोड़े ही दिनमें सूख जाता है तथा उसका फल भो उसे नहीं मिलता। इस प्रकार उसके समान कोई मूर्ख नहीं ठहरता। इसी प्रकार थोडेसे आरम्भजनित पापके डरसे जो धर्मके कारण । पुण्य कार्योंको नहीं करते हैं वे अवश्य ही पुण्यके अभावसे कुगतिमें जाकर उत्पन्न होते हैं। जिस प्रकार फल लगते ही पुष्पका नाश हो जाता है उसी प्रकार दान, पूजा आदिसे उत्पन्न हुए। पुण्यके लगते हो उन कार्योंके आरम्भसे उत्पन्न पाप अवश्य नष्ट हो जाता है । यदि ऐसा न हो तो फिर तुम जो पूजा, दानादिक करते हो वह भी निष्फल है । तथा कर्तव्यता महाहिंसा और आरम्भादिक महापापपूर्वक होती है क्योंकि संसारमें काई भी कार्य और स्थान निरवद्य ( पापराहत ) और निर्जीव नहीं है । इसी प्रकार पुण्य धर्मका कारण है और वह धर्म उसी पुण्यका उत्पादक है तथा वह धर्म मोक्षका कारण और मोक्षका साधक है । इस अनुक्रमसे परस्पर हेतु रूप हैं। जो मनुष्य आरम्भादिक थोड़ेसे पापके उरसे महापापोंको नाश करनेवाले महान् पुण्यबंधको छोड़ देते । हैं वे धर्मके कारण जो पुण्य हैं उसके अभावसे मोक्षके कारण और पापके नाश करनेवाले धर्मको भी छोड़ देते हैं। और धर्मका त्याग कर देनेसे महापाप कर्मके उदयसे नरक निगोवारिक दुर्गतियोंको प्राप्त होते है। यह ऐसी । दुर्बुद्धि बिना अशुभ गति बंधके उत्पन्न नहीं हो सकतो। कोई दो मनुष्य व्रव्य उपार्जन करने के लिए घरसे निकल कर रत्नद्वीपको चले। मार्गमे चलते-चलते ।। RETATE-TEASERरासस [ २६
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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