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________________ जिस दिन हम उपवास करते हैं उस दिन भगवानको पूजा करनी चाहिये या नहीं ? कदाचित् कोई यह कहे कि रात्रिमें पूजा किसने को है तो इसका समाधान यह है कि वाजंघ श्रीमतीने विवाहके बाद अनेक पर्षासागर दोपकोंके उद्योतसे ईर्यापथविशुखिपूर्वक अभिषेक कर रानिमें पूजाको यो सो हो महापुराणके सातवें पर्वमें । [.२५५ ] लिखा है अथापरेयुरुद्यानमुद्योतयितुमुद्यमी । प्रदोषे दीपकोद्योते महापूतं ययौ वरः ॥ कृतेर्याशुद्धिरिद्धाद्धःप्रविश्य जिनमंदिरे । तत्रापश्यद्यतीन् दीप्ततपसः कृतवंदनः ॥ ततो गंधकुटीमध्ये जिनेंद्राचा हिरण्यमयीम् । पूजयामास गंधाधैरभिषेकपुरस्सरः ॥ इसी प्रकार प्रतकथाकोशमें चन्दनषष्ठी आदि अनेक व्रतोंके विधाममें कथा और विधिपूर्वक रात्रिपूजन का कथन किया है । वह सब लिखा भी नहीं जा सकता, ऐसा समझ कर निषेध नहीं करना चाहिये । जो लोग निषेष करते हैं वे जिनश्रुप्तके विरोधी कहे जाते हैं । कोई-कोई ऐसा कहते हैं कि मुनि वनमें ही रहते हैं, मंदिर में नहीं, रहते सो भी पहले बलोकोंमें कहा है कि वनजंघ श्रीमतीने पहले मुनियोंकी वंदना को फिर भगवानको पूजा को । आराधना कथाकोशमें लिखा है कि श्रीमजिनेन्द्रचन्द्र की पूजा पापको नाश करनेवाली है प्रत्यक्ष स्वर्ग मोक्षको देनेवालो शास्त्रोंमें बतलाई है। जो श्रेष्ठ बुद्धिवाले पुरुष भगवानको ऐसो पूजाको धर्मके लिये पवित्र होकर भक्तिपूर्वक करते हैं वे ही सम्यग्दृष्टियों में शुद्ध है और वे ही महाभव्य हैं। इसमें सन्देह नहीं । तथा जो जिनपूजाको निन्दा करते हैं वे पापो इस पृथ्वीपर निन्दनीय होते है और उस मिन्दाके पापसे वुःखो, दरिद्री कोढ़, अन्धापन, लँगड़ापन, जलोदर आदि अनेक रोगोंसे दुःखी होते हैं, पीछे दुर्गतिके पात्र होते हैं ऐसा लिखा है । यथाहुई श्रीमजिनेन्द्रचन्द्राणां पूजा पापप्रणाशिनी। स्वर्गमोक्षप्रदा प्रोक्ता प्रत्यक्षपरमागमे ॥ यः करोति सुधीर्भक्त्या पवित्रोऽपापहेतवे । स एको दर्शने शुद्धो महाभव्यो न संशयः॥ 1 यस्तस्या निन्दकः पापी ल नियो जगति ध्रुवम् । दुःखदारिद्ररोगादि दुर्गते जनं भवेत् ॥ । सामन्यायाoutHATKHATANARASTRIKE ImraMETAswimageATRAPARAMEmanumazA
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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