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________________ चर्चासागर [ २४० ] कदाचित् यहाँपर कोई यह कहे कि हम को पूजा पाठ रोज पढ़ते हैं उसमें यदि लिखा हो तो हम मानेंगे, नहीं तो नहीं। उनके लिये कहते हैं। पहले अनेक ग्रंथोंके प्रमाण दिये उनको न मानना और केवल हठकरना योग्य नहीं है । यदि हमारे दिये हुए प्रमाण न माननेका हो हठ है तो तुम जो नित्य पूजापाठ पढ़ते हो उसमें भी पुष्प कहे हैं। यथा- कु' दारविंदप्रमुखप्रसूनैर्जिनेन्द्र सिद्धांतयतीन् यजेऽहम् ॥ अर्थात् 'मैं कुन्द, कमल आदि पुष्पोंसे जिनेन्द्र सिद्धांत और यतियोंकी पूजा करता हूँ' ऐसा लिखा है तथा सिद्धपूजामें भी लिखा है 'सवृगंधाक्षतपुष्पवामचरुकैः' अर्थात् श्रेष्ठ गंध, अक्षत, पुष्पमाला और नैवेद्यसे पूजा करता हूँ, यहाँपर पुष्पमालासे पूजन करना बतलाया है। कहाँ तक कहा जाय बहुतसे पाठ हैं वे सब लिखे भी नहीं जा सकते । विवेकियोंको तो एक ही ग्रन्थका प्रमाण बहुत है तथा न समझनेवालोंके लिये बहुतसे प्रमाण भी हितरूप नहीं हो सकते । इस प्रकार जिनांघ्रि पर गंध और पुष्प लगानेका वर्णन किया । भगवान के चरणस्पशित गंध, पुष्प हो उनके चरणोंकी रज है । वह भव्य जीवोंको गंधोदकके समान मस्तकपर लगाना योग्य है। इसमें किसी प्रकारका संदेह नहीं। यह रज बड़े पुष्प से प्राप्त होती है । इसके लगानेसे जीवोंके बड़े-बड़े पाप कट जाते हैं। देखो पुजासारमे लिखा है-ब्रह्मघ्नोथवा गोनो वा तस्करो वान्यपापकृत् । जिनांघिगंधसंपर्कान्मुक्तो भवति तत्क्षणे ॥ अर्थात् जिसने गया ब्राह्मणकी हत्या को हो अथवा चोरी को हो तथा स्त्री, बालक, कन्याका areप अन्य पाप किये हों सो भी भगवानके चरणस्पर्शित गंधके सम्बन्धसे तिलक लगानेसे उसी क्षणमें उन पापोंसे मुक्त हो जाता है।' इस प्रकार जिनांप्रिस्पर्शित ( भगवान के चरणकमलोंसे स्पशित ) गन्य अर्थात् वंदन, केसर आदिका माहात्म्य है । इसमें इतना और समझ लेना चाहिये कि चन्दन, केसर अथवा पुष्प वा पुष्पमालामें पापों को काट देनेका गुण नहीं है उसमें तो केवल सुगन्धित होनेका ही गुण है । यह गुण तो भगवानके चरणोंका है। उन चरणोंके सम्बन्धसे उनका स्पर्श करनेसे हो उस गंध वा पुष्पोंमें वह गुण आ जाता है । इसी प्रकार जिनगंधोदकमें भी भगवानके शरीरके स्पर्शसे वह पापोंके काटनेका गुण आ जाता है । [ २
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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