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शुषलवादमायालय सराहीदिवसेऽईताम्। स्नपनं पूजनं कृत्वा भक्त्याष्टविधमूर्जितम् ॥
। वध्यते मुकुटं मूमि चितं कुसुमोत्करैः । कंठे श्रीकृषभेशस्य पुष्पमाला च धार्यते ॥ पासागर
मुक्तिस्वयंवरालक ते समक्षं सर्वभूभुजाम् । कंठेभूत्तह कंठे तवाहन कुसुमलजम् ॥ 11 इत्युक्त्वा मालतीकुदकुमुदादिसमुद्भवाम् । धारयेदर्हतः कंठे माला पुण्याप्तिहेतवे ।।
इस प्रकार कथाकोशमे है । इनका अर्थ ऊपर लिख चुके हैं सो यहाँसे कथा सहित देख लेना चाहिये ।। . मैनासुन्दरीने भी श्रीमुनिराजके उपदेशानुसार सिद्धचक्रको पूजा अभिषेक कर अपने पतिको तया उनके सातसो साथियोंको वह गंधोदक पुष्प और चंदन दिया था और उसीसे उनका कोढ़ रोग दूर हुआ था।
जैसा कि श्रीपालचरित्र लिखा है। इति वृद्धिक्रमेणैषा सिद्धान् प्रपूज्य भक्तितः । ददौ भनेंगरक्षेभ्यस्तरपुष्पोदकचन्दनम् ॥
इसके सिवाय श्रीगोम्मटस्वामीको वंदना कहते समय निर्वाण कारके पाठमें लिखा है कि देव लोग पाचसो धनुष ऊँचो उस गोम्मटस्वामीकी प्रतिमापर केशर और पुष्पोंकी वर्षा करते हैं । यथा--
गोमटदेवं वंदमि पंचसयधणहदेहउध्वंतं ।
देवा कुणति विठ्ठी केसरकुसुमाणि तस्स उवरम्मि । इसके सिवाय और भी अनेक जैनपुराणों में यह कथन लिखा है, वहाँसे जान लेना चाहिये तथा पूजाके पाठोंमें सब जगह लिखा ही है। यथा--
___ सुजातिजातेः कुमुदाजकुदः, मंदारमाखावकुलादिपुष्पः।
मचालिमालामुखरैर्जिनेन्द्रपादारविंददयमर्चयामि ॥ इसका अभिप्राय यह है कि पूजा करनेवाला पूजाके समय कहता है कि जुई, कुमुदिनी, कमल, कुन्च, मंदारजातिके पुष्प मौलिथी आदि उत्तमोत्तम आवि सुगन्धित पुष्पोंसे तथा और भी अनेक प्रकारके पुष्पोंसे जिनपर मदोन्मत्त प्रमरों के समूह गुजार कर रहे हैं ऐसे सुन्दर पुष्पोंसे मैं भगवानके शोनों चरणकमलोंको पूजा करता हूँ। मावि वर्षय है।