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________________ वर्षासागर [ २३० 3 नाneerpreTTAR Ranालामारी मानते हैं, ब्रह्मवादी परब्रह्मरूप मानते हैं । वैष्णव विष्णुरूप मानते हैं और वेदवाले साक्षात् वेदरूप मानते हैं । इस प्रकार कितने ही प्रकारसे अपने-अपने इष्ट देवको मानते हैं। तथा ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीनों रूप भी इसको मान कर ध्यान करते हैं, ऐसा जानना । आगे हों का स्वरूप लिखते हैं यह ह्रींकार ह र ई और बिंदु इनसे मिलकर बना है। सो यहाँ भी छंदसि इस सूत्रसे अनुस्वारको अखंचन्द्राकार बना लेना चाहिये । ओंकार तो वेद है सो पुरुष है और यह ह्रीं मायाबोज है सो वेवमाता है तथा गायत्रीरूप है सो स्त्रीरूप वेवमयी है । सोही लिखा है ओंकारः पुरुषो ज्ञेयः गायत्री स्त्री च कथ्यते । इस प्रकार गायत्री टीकामें लिखा है । इस न्यायसे यह भी वेद ही है। इस हौंकारमें हकार तो पाश्र्वनायसंबंधी है नीचेका रकार धरणेन्द्र संबंधो है और ईकार स्वर और बिदु पचायती संबंधी है । इस प्रकार तीनों वेवोंका निवास इस मायाबीज ह्रींकारमें प्राप्त होता है । सो ही उभयभाषाकविशेखर श्रीमल्लिषेण सूरि विरचित पावतीकल्पके तीसरे परिच्छेदमें लिखा है सान्तः पार्श्वजिनेन्द्रस्तदधोरेफः स धरणेन्द्रः। तुर्यस्वरः सविन्दुः स भवेत्पद्मावतीसंज्ञः ॥ ३७॥ जो पुरुष इस मायाबोज ह्रींकारको ओंकारपूर्वक नमस्कारमय एकाक्षरी विद्यामय 'ॐ ह्रीं नमः' इस मंत्रको जपते हैं वे मनोवांछित फल पाते है इसके सिवाय यह मंत्र तीनों लोकोंके जीवोंको मोहित करनेवाला है। सो ही पदमावतीकल्पमें लिखा है त्रिभुवनजनमोहकरी विद्याप्रणवपूर्विका एषा। __एकाक्षरीति संज्ञा जपतः फलदायिनी नित्यम् ॥ यही कथन सोमसेनकृत त्रिवर्णाचारमें लिखा है तथा ज्ञानार्णव, जिनसंहिता, पूजासार, जिनयनकल्प, जिनप्रतिष्ठापाठ, शांतिचक, त्रिवर्गाचार, महाभिषेक आदि शास्त्रों में हीका अर्थ इस प्रकार लिखा है-'हो'. । यह बीज तो भी मरहतका पाचक है। 'हो' यह मोज सिद्धपरमेष्ठोका वाचक है । 'हं.' यह बीज आचार्यका ।। PRATISHT ... - - -
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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