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________________ __ अर्थात् मृत मनुष्यको फिर मृत्यु नहीं होती इसी प्रकार बोर्षको वीर्घ नहीं होता। तथा-हस्थको । वीर्घ हो जाता है परन्तु वीर्घको वीर्घ नहीं होता। जहाँपर पहला स्वर दोघे होता है वहाँपर फेवल परका लोप हो जाता है । इस सूत्रके न्यायसे आगेके दूसरे आकारका लोप हो जाता है । इसलिये आ के आगेके आ [२२७ ] का लोप हो जाता है और अकेला आ रह जाता है। फिर उसके आगे उपाध्यायका उ याता है । सो 'उवणे ओ' इस सूत्रसे आ को ओ हो जाता है और उ का लोप हो जाता है। फिर मुनिका मकार आता है उसका 'मोनुस्वारः' मकारको अनुस्वार हो जाता है इस सूत्रसे मकारको अनुस्वार हो जाता है। तथा सूचीसूत्र न्यायसे । वह अनुस्वार ओके ऊपर चढ़ जाता है और 'ओं' ऐसा शब्द सिद्ध हो जाता है । इस प्रकार इस ओंकार शब्दमें । पांचों परमेष्ठी विराजमान रहते हैं। इसीलिये यह ओंकार शब्य सबमें मुख्य माना जाता है और सबसे पहले। उच्चारण किया जाता है । इस प्रकार स्वामिकातिकेयानप्रेक्षाको शुभचन्द्र कृत संस्कृत टोकामें सिद्ध किया है। प्रश्न-यहाँपर ओंकार तो सिद्ध हो गया परन्तु उसके मस्तक पर अनुस्वार होना चाहिये उसके । मस्तकपर अर्द्धचन्द्राकार कला किस प्रकार है ? पहले जो व्याकरणसे सिद्ध किया है उसमें भी अनुस्वार हो । | सिख होता है । अर्द्ध चन्द्राकार कला सिद्ध नहीं होतो? उत्तर-यह ठीक है कि मकारका अनुस्वार ही होता है परन्तु छन्दः अथवा वेदमें अनुस्वारको अर्द्ध चन्द्राकार कला भी हो जाती है । अतएव अनुस्वार तो व्याकरणके अनुसार सिद्ध कर लेना चाहिये और फिर अनुस्वारको वेबके अनुस्वार अर्द्धचन्द्राकार कला बना लेना चाहिये।। कदाचित् यहाँपर कोई यह पूछे कि वेव क्या है तो इसका उत्तर यह है कि यह ओंकार हो स्वयं साक्षात् घेवस्वरूप है। 'छंदसि अनुस्वारः 'अर्द्धचन्द्रकलामापद्यते' वेदमें अनुस्वार अर्धचन्द्राकार हो जाता है। इस सूत्रके अनुस्वार अर्द्धचन्द्राकार हो जाता है । ऐसा समझ लेना चाहिये। यह ओंकार पुरुष है इसीलिये सब कार्योंमें पहले लिखा जाता है । सो हो लिखा है। 'ओंकारः पुरुषो यः' अर्थात् ओंकारको पुरुष समझना चाहिये। ऐसा गायत्रीको टीकामे लिखा है। इसोको पहले उच्चारण कर पोछे और कार्य करते हैं जिससे उन अन्य सब कार्योंको सिद्धि हो आय। यह ओंकार परमब्रह्मका स्वरूप है। बड़े-बड़े योगीश्वर नित्य इसका ध्यान करते हैं तथा यह ओंकार काम और मोक्षका देनेवाला है । सोही । लिखा है URATISeaAPPAMHASTRIPATHAMARTPATRA
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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