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________________ चर्चासावर २१६] कायसे उनकी पूजा भक्ति आदि विनय करना तथा इनको धारण करनेवालोंकी पूजा भक्ति आदि विनय करना तथा विनयके लिये सदा सावधान रहना सो विनयसम्पन्नता नामका दूसरा कारण है । तीसरा कारण शीलव्रतेष्वनविचार है। शील और व्रतोंमें अतिचार नहीं लगाना तथा मौ बाड़सहित और अठारह हजार भेवोंसे परिपूर्ण ब्रह्मचर्यको पालन करना सो तीसरा शीलवतेष्वनतीचार नामका तीसरा कारण है । चौमा कारण अभीक्ष्णज्ञानोपयोग है। अपने आत्माके उपयोगको सदा ज्ञानमें लगाये रखना अभीषणज्ञानोपयोग है। भावार्थ - मिरन्तर द्वादशांगको पढ़ना, पढ़ाना, अपने मनको किसी और कार्यमें अथवा किसी अन्य स्थानमें न लगाना अभीक्ष्णज्ञानोपयोग नामका चौथा कारण है । पांच कारण संवेग है । अपने मनके वेग को खूब अच्छी तरह अशुभ प्रवृत्तियों से रोकना तथा शुभ भावोंमें स्थिर करना अर्थात् देह, भोग और संसारसे विरक्त होकर वैराग्यका चिन्तवन करना सो संवेग नामका पाँच कारण है । छठा कारण शक्तितस्त्याग अथवा अपनी शक्तिके अनुसार त्याग शक्ति के अनुसार विषयकषायोंका त्याग करना तथा चार प्रकारका दान देना। बढ़ न करना सो शक्तिस्त्याग नामका छठा कारण है । करना वा दान देना है। अपनी भावार्थ - अपनी शक्तिले कम सात कारण शक्तितस्तव अर्थात् शक्तिके अनुसार तप करना है । अपनी सामर्थ्यंके अनुसार अनशन, अथमोदर्य, वृत्तपरिसंख्यान, रसपरित्याग, कायक्लेश, विविक्तशय्यासन ये छः प्रकार के वाह्य तप तथा प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, व्युत्सर्ग और ध्यान इन छः प्रकारके अन्तरंग तपोंको अच्छी तरह धारण करना, अपनी शक्तिको न छिपाकर शक्तिके अनुसार पालना सो शक्तितस्तप नामका सातवां कारण है । arori कारण साधुसमाधि है । साधुओंपर आये हुए उपसगको दूर करना तथा उनकी सेवा शुश्रूषा करना साधुसमाधि है । atri कारण वैयावृत्य है। जो मुनि अपनेसे ( किसी मुनिसे) बड़े हैं या अपने समान हैं अथवा छोटे होनेपर भी रोगी हैं या और किसी व्याधिसे पीड़ित हैं अथवा मुड़ापेसे दुःखी हैं उन सबकी दहल चाकरी करना, [ २१
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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