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________________ वाह्य ह्रीं ॐ नमोऽहं दिशि लिखित चतुर्थीवीजकं होमयुक्तं, मुक्तिश्रीवल्लभोसो भुवनमपि वशं जायते पूजयेद् यः॥ चिसागर ( अति-कामिका है लिखकर तीन वलय वेके उसके बाहर आठ दलका कमल बनाये उनमें क्रमसे २१२ ] ऐं क्रीं श्रीं भौं हीं ग्लौं क्लीं यू लिखना चाहिये फिर तीन बलय देकर चारों दिशाओं में ॐ नमोह स्थाहा लिखना चाहिये । इस प्रकार बनानेसे यह सिंतामणि यन्त्र बन जाता है जिसकी पूजा करनेवाला मक्तिरूपी लक्ष्मीका स्वामी होता है और तीनों लोक उसके वशमें हो जाते हैं। इस प्रकार यह चितामणि चक्र है सो । पूजा करनेवालोंको चितामणि रत्नके समान चिंतित पदार्थोको देता है । इसलिये इसको नित्य पूजा, जप, तप, ध्यान करना चाहिये। यह चिंतामणि चक्र और प्रकारसे भी बनता है सो अन्य शास्त्रोंसे जान लेना चाहिये। यह लघु विधि है। इति चिंतामणि चक्र विधि । यन्त्र पृष्ठ २१२ (क) में देखो। १६२-चर्चा एकसौ बासठवीं प्रश्न---गणधर वलय यन्त्रका स्वरूप तथा आराधन किस प्रकार है ? समाधान-यह गणधर वलयका यन्त्र सोने, चांदी तथा तावे आदिके पत्रमें पहले लिखी हुई विधिके । अनुसार लिखना चाहिये। सबसे पहले एक कणिका बनानी चाहिये उसमें उलट पलट रूप दो त्रिकोण बनाना चाहिये जिससे न जाय फिर उसके बीच में हो हीरोहः असि आउ सा स्वाहा' यह मन्त्र लिखना चाहिये। फिर इसो मन्त्रके ऊपर ॐ अई यी क्वीं ह्रीं श्रीं ये बीजाक्षर लिखना चाहिये। फिर छहों कोनों में है "अप्रति चक्रे फट" लिखना चाहिये फिर वहींसे उलट कर दाई ओर "विच क्राय स्वाहा" लिखना चाहिये। फिर वलय देकर छह वलका कमल बनाना चाहिये उनके बीच बीच में संधि रखना । उन छहो दोंमें छह कुमारिकाओं के नाम लिखना चाहिये अर्थात् पहले दलमें 'ॐ श्री' दूसरेमें 'ह्रां ह्री' तोसरेमें 'ही वृति' चौथेमें 'हूं कीति' पाँचवेमें 'लौं बुद्धि' छठेमें 'हः लक्ष्मी' इस प्रकार छहों कोठोंमें छहों कुमारिका वेवियोंके नाम I लिखना चाहिये तथा उनके मध्यमें 'सों नौं' ऐसे बीचके संधिपत्रों में लिखना चाहिये । [२१ ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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