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________________ सागर २०७ ] १०. नप फ ब भ म सातवेंमें य र ल व मौर आठवेंमें दाव सह लक्ष लिलना चाहिये । फिर प्रत्येक कोठेमें जो दो-दो अनाहत लिखे हैं. उनके बीचमें अर्थात् आठों पत्रोंमेंसे दो-दो बच्चोंके मध्य भागमें हकाराविक पिडाष्टक लिखना चाहिये अर्थात् पहले कोठेमें हकार मकार लकार वकार ऊ रकार यकार अधो रकार अर्द्धचन्द्राकार कलायुक्त अनुस्वार नीचे दीर्घ ऊकार इन सब अक्षरोंसे मिला हुआ हकार लिखना चाहिये । उसका स्वरूप "हम्हप्यू" इस प्रकार है। दूसरे कोठेमें ह्कारको जगह भकार लिखना बाकीके अक्षर ऐसा बन जाता है । तीसरे ज्योंके त्यों मिला देना चाहिये। इन सबके मिलानेसे उसका स्वरूप 'भल्यू ' कोठे हकारकी जगह मकार लिखकर उसमें सब अक्षर मिलाकर लिखना चाहिये उसका स्वरूप 'मल्ब्यू' ऐसा होता है। चौथे कोठे हकारकी जगह रकार लिखकर उसमें अम्य अक्षर ज्योंके त्यों मिलाकर लिखना चाहिये उसका स्वरूप " ऐसा होता है। पाँचवें कोठे हकारको जगह धकार लिखकर उसमें बाकी अक्षर मिलाकर लिखना चाहिये उस स्वरूप'" ऐसा होता है। छठे कोठे में पहला अक्षर कार लिखकर तथा बाकीके अक्षर उसमें मिलाकर लिखना चाहिये । उसका स्वरूप 'स्ट्यू' ऐसा होता है। सातवें कोठे में पहला अक्षर सकार लिखना चाहिए तथा बाकीके अक्षर मिलाकर 'स्स्यू' ऐसा बीजाक्षर बनाकर लिखना चाहिये। आठवें कोठेमें पहला अक्षर व लिखकर उसमें सब अक्षर मिलाना चाहिये उसका स्वरूप 'म्यू" ऐसा होता है। इस प्रकार आठों कोठोंमें अनाहतोंके घोचमें ये बीजाक्षर लिखने चाहिये । फिर तीन वलय बेकर क्षितिमंडलसे वेष्ठित करना चाहिये । उसमें चारों दिशाओंमें चार क्षित बीज और चारों कोणोंमें चार इन्द्रायुध वीजसे वेष्ठित करना चाहिये। इस प्रकार बनानेसे यह कलि कुण्डदंडयंत्र बन जाता है । इस यन्त्रका उद्धार इस प्रकार है । कणिकामें स्थित जो ॐ ह्रीं श्रीं ऐं क्लीं अहं इत्यादि मूल मंत्रसे पंचोपचारी पूजा करनी चाहिये। फिर एकसौ आठ बार सुगन्धित पुष्पोंसे अथवा रक्त कंडीरके पुष्पोंसे जाप करना चाहिये । इस यंत्र से समस्त अभीष्ट पदार्थोंकी सिद्धि होती है तथा परकृत समस्त दुष्ट विद्याओंका नाश होता है । Ai [ २
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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