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________________ बलोंमें सोलह विद्यादेवियों को स्थापन करना चाहिए । इस प्रकार सोलह बल कमलको भर देना चाहिये। तदनन्तर उस सोलह वल कमलके बाहर जो चौबीस बलका कमल है उसमें पूर्वविशासे प्रारम्भ कर ! धागरअनुनामसे चौबीस शासन देवियोंको स्थापन करना चाहिये । यथा-'ह्रीं चश्वरीदेव्यै स्वाहा' इस प्रकार चक्रेश्वरीसे लेकर सिझायनी पर्यन्त पौबीसों शासनदेषियोंको स्थापन करना चाहिये । इस प्रकार चौबीस बल कमलको भर देना चाहिए । चौबीस बल कमलके बाहर वलयके बाद मत्तीस बल कमल है सो उसमें भी पूर्व दिशासे प्रारम्भ कर अनक्रमसे बत्तीस इस्त्रको स्थापन करना चाहिये। इन सब देवियोंको तथा इन्द्रोंको ग्राह्य माया बोजसे प्रारम्भ कर होमात (जिसके आदिमें ॐ ह्रीं यह ब्रह्म और मायावीज हो तथा मध्यमें चतुर्थी विभक्ति सहित देवो वा इन्द्रका नाम हो और अन्तमें होमात अर्थात् होमके अन्समें कहे जाने वाला स्वाहा शब्ध हो, इस प्रकार सब देव-वेषियोंको स्थापन करना चाहिये ) लिखना चाहिए । यथा-ॐ ह्रीं असुरेन्द्राय स्वाहा' इस प्रकार बत्तोसों अप्रतिचक्रायै स्वाहा ५ ॐ ह्रीं पुरुषदक्षायै स्वाहा ६ ॐ ह्रीं काल्यै स्वाहा ७ ॐ ह्रीं महाकाल्यै स्वाहा ८ ह्रीं गांधार्य स्वाहा ९ॐ ह्री गोयें स्वाहा १. ॐ ह्रीं ज्वालामालिन्यै स्वाहा ११ ॐ ह्रीं धैरोटथे स्वाहा १२ॐ ह्रीं अच्युतायै स्वाहा १३ * ह्रीं अपराजितायै स्वाहा १४ ॐ ह्रीं मानसोदेव्यै स्वाहा १५ ॐ ह्रीं महामानसी देव्यै स्वाहा १६ । ॐ ह्रीं चक्रेश्वरी देव्यै स्वाहा १ ॐ ह्रीं रोहिण्ये स्वाहा २ ॐ ह्रीं प्रज्ञप्त्यै स्वाहा ३ ॐ ह्रों वाङ्खलाये स्वाहा ४ ॐ ह्रीं पुरुषदत्तायै स्वाहा ५ ह्रीं मनोवेगायै स्वाहा ६ ॐ ह्रीं काल्यै स्वाहा ७ ॐ ह्रीं महाकाल्यै स्वाहा ८ ॐ ह्री ज्वालामालिन्यै स्वाहा १ ॐ ह्रीं मानव्यै स्वाहा १० ॐ ह्रीं गौर्यै स्वाहा ११ ॐ ह्रो गांधार्य स्वाहा १२ ॐ ह्रीं वैरोटये स्वाहा १३ ॐ ह्रीं अनन्तमत्यै स्वाहा १४ ॐ ह्रीं मानसीदेव्यै स्वाहा १५ ॐ ह्रीं महामानसोदेव्यै स्वाहा १६ ह्रीं जयाये स्वाहा १७ ॐ ह्रीं विजयायै स्वाहा १८ॐ ह्रीं अपराजितायै स्वाहा १९ ॐ ह्रीं बहुरूपिण्यै स्वाहा २०ॐ ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा २: ॐ ह्रीं कुष्माडिन्यै स्वाहा २२ *हों पद्मावत्यै स्वाहा २३ ॐ ह्रीं सिद्धायन्यै स्वाहा २४ । ॐ ह्रीं असुरेन्द्राय स्वाहा १ ॐ ह्रीं नागेन्द्राय स्वाहा २ ॐ हों विद्युदिन्द्राय स्वाहा ॐ ह्रीं ३ सुपर्णन्द्राय स्वाहा ॐ ह्रीं अग्नींद्राय स्वाहा ५ *हों वातेन्द्राय स्वाहा ६ॐ ह्रीं स्तनितेन्द्राय स्वाहा ७ ॐ ह्रीं उदधौदाय स्वाहा ८ ॐ ह्रीं द्वीपेंद्राप स्वाहा ९ ॐ ह्रीं दिगिन्द्राय स्वाहा १० ॐ ह्रीं किन्नरेन्द्राय स्वाहा ११ ॐ ह्रीं किंपुरुषेन्द्राय स्वाहा १२ ॐ ह्रीं महोरगेन्द्राप स्वाहा १३ ॐ ह्रीं गन्धर्वेन्द्राय स्वाहा १४ ॐ ह्रीं यक्षेन्द्राय स्वाहा १५ ॐ ह्रीं राक्षसेन्द्राय स्वाहा १६ ॐ ह्रीं भूतेन्द्राय स्वाहा १७ ॐ ह्रीं पिशाचेन्द्राय स्वाहा १८ॐ ह्रीं चन्द्रेन्द्राय स्वाहा १९ ॐ ह्रीं आदित्येन्द्राय स्वाहा २०ॐ ह्रीं सौधर्मेन्द्राय स्वाहा २१ ह्रीं ईशानेन्द्राय स्वाहा २२ ॐहों सानत्कुमारेन्द्राय स्वाहा २३ ॐ ह्रीं माहेंद्राय स्वाहा २४ ॐ ह्रीं ब्रोन्द्राय
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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