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________________ 1 बनाना चाहिये । फिर उसके बाहर वलय देकर चौबीस बलका कमल बनाना चाहिये। फिर उसके बाहर । बलय देकर बत्तीस वलका कमल बनाना चाहिये। उसके बाहर बलय बेकर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम, उत्तर इन चिसागर चारों विशाओंमें भनके आकारके चार द्वार वा दरवाजे बनाना चाहिए। फिर एक-एक द्वारके दोनों ओर तोन२०२] तीन त्रिशूलाकार पत्र लिखना चाहिये। इस प्रकार चारों ओरके उन आठ त्रिशूलोंके चौबीस क्षोभ करना चाहिए। फिर चारों विधिशाओंके मालक बाहर पो-दो अला शिसिनण्डलके लिये त्रिशूलाकार बना बनाना चाहिये और उसके आठ वन लिखना चाहिए । इस प्रकार मितिमाल करि सहित शांतिधक यन्त्रका । उबार करना चाहिये। सबसे पहले कणिकाके मध्यभागमें "ॐ ह्रीं अहंदूयो नमः' यह मंत्र लिखना चाहिये फिर उसी में कणिकामें उस मंत्रके पूर्वको ओर "ॐ ह्री सिद्धेभ्यो नमः" याह मंत्र लिखना चाहिये फिर उसकी बक्षिण दिशामें 'लों सूरिभ्यो नमः' लिखना चाहिये । पश्चिमको ओर "ॐ ह्री पाठकेभ्यो नमः" लिखना चाहिए । उत्तरको ओरके वलमें 'ॐ ह्रीं सर्वसाधुभ्यो नमः' लिखना चाहिए । तवमंतर उसो कणिकामें चार विदिशाओंके चार दलों से अग्निकोणके बलमें "ॐ ह्रीं सम्यग्दर्शनाय नमः" नैऋत कोणमें "ॐ ह्रीं सम्यग्ज्ञानाय नमः" है वायव्यकोणमें "ॐ ह्रीं सम्यचारित्राय नमः" और ईशान कोण "ॐ ह्रीं सम्यक्तपसे नमः" लिखना है चाहिये। यह कणिकामें बने नौ कोठोंका उद्धार है। इस कणिकाके बाहर वलयके बाहर मो अष्ट बलाकार कमल हैं उसमेंसे पूर्वके दलमें "ॐ ह्रीं जयायै स्वाहा" बक्षिणके वलमें "ॐ ह्रीं विजयाय स्वाहा" पश्चिमके क्लमें A "ॐ ह्रीं अजितायै स्वाहा" उत्तरके बलमें "ॐ ह्रीं अपराजितायै स्वाहा" लिखना चाहिए। फिर अग्निकोणमें H "ॐ ह्रीं जभायै स्वाहा" नैऋत्य कोणमें "* ही मोहायै स्वाहा" वायव्य कोणमें “ॐ ह्रीं स्तम्भायै स्वाहा" । तथा ईशान कोगमें "ॐ ह्रीं स्तम्भिन्यै स्वाहा" लिखना चाहिए । इन सब मंत्रोंको प्रणव मायवीजपूर्वक होमात लिखना चाहिए । इस प्रकार कणिकाके बाहरका अष्टदल कमल भर देना चाहिए। उसके बाहर वलयके बाद सोलह वलका कमल हे सो उसमें पूर्व विशासे प्रारम्भ कर अनुक्रमसे सोलह विद्या देवियों के नाम लिखना चाहिए। यथा 'ॐ ह्रीं रोहिण्यै स्वाहा' *ह्रीं प्राप्यै स्वाहा। इस प्रकार सोलह १. ॐ ह्रीं रोहिण्यै स्वाहा १ ह्रीं प्रशप्रय स्वाहा २ ॐ ह्रीं वणशृङ्खलायै स्वाहा ३ ॐ ह्रीं वांकुशाय स्वाहा ।। ॐ ह्रीं ।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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