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________________ पर्चासागर (१७७ ] SpeamPHOLARSHIPRANAMASHArna र सिद्धाणं शिरोऽग्रभागे, ॐ ह्रीं णमो आइरिआणं शिरो नैऋत्याम्, ॐ ह्रीं णमो उवमायाणं शिरो वायव्याम् ॥ ॐ ह्रीं णमो लोए सव्वसाहूणं शिरोईशाने । ( शिरके मध्यमें, शिरके आगे, शिरको नैऋत विशामें, शिरको है वायव्य दिशामें और शिरको ईशान विशामें अंगन्यास करे ) फिर तीसरा अंगन्यास ऊपर लिखे मन्त्र पढ़कर अनुक्रमसे दाहिनी भुजा, बायीं भुजा, नाभि, वायों कोख और बायीं काँखमें करे। यथा--ॐ ह्रीं गमो अरहन्ताणं स्वाहा दक्षिणभुजायां, ॐ ह्रीं णमो शिक्षा दामभुजाया को किरा नाभी, ॐ ह्रीं नमो उवमायाणं दक्षिणकुक्षौ, ॐ ह्रीं णमो लोए सब्यसाहणं वामकुक्षौ । तवनन्तर बाएँ हाथकी तजिनी उंगली में पंचमन्त्रको स्थापन कर पूर्व दिशाको आदि लेकर दशों दिशाओं में नीचे लिखे मन्त्र पढ़कर सरसों क्षेपण करनी चाहिए । ॐ क्षों स्वाहा पूर्वस्या, क्षों स्वाहा आग्नेये, ॐ झुं स्वाहा दक्षिणे, ॐः स्वाहा नैऋत्ये, ॐ क्षों स्वाहा पश्चिमे, ॐ क्षों स्वाहा वायव्यां, ॐ क्षों स्वाहा उत्तरे, ॐ शं स्वाहा ईशाने, * क्षः स्वाहा अधः, ॐ भः स्वाहा ऊर्ध्वम् । इस प्रकार वशों विशाओंमें सरसों स्थापन करनी चाहिये। फिर ॐ ह्रां ह्रीं हूं, हैं ह्रौं । से हहः स्वाहा, इस मन्त्रको पढ़कर वशों विशाओंमें सरसों क्षेपण करनी चाहिए। यह शून्य बीज है। इस प्रकार वंशों दिशाओंका बन्धन करना चाहिए। फिर मन्त्रको जाननेवाले श्रावकको मन्त्रपूर्वक कवच और करन्यास करना चाहिए । इसकी विधि इस प्रकार है। ॐ ह्रीं क्याय नमः शिरसि, ॐ ह्रीं शिखायै वषट, कवचाय हूं, अस्त्राय फट ' यह मन्त्र पढ़कर पृथक-पृथक् मन्त्रोंसे मस्तकका स्पर्श करना चाहिये। चोटोका स्पर्श कर चोटीमें गांठ बांधनी चाहिए। फिर कन्धेसे लेकर समस्त शरीरको दोनों हाथोंसे स्पर्श कर फिर दोनों हाथोंसे ताली बजाकर शब्द करना चाहिए । फिर परमात्माका ध्यान करना चाहिए। ध्यानके मन्त्र ये हैं। ॐ ह्रीं णमो अरहन्ताणं अर्हद्भयो नमः' इसको २१ बार जपना चाहिए । 'ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं सिद्धेभ्यः नमः स्वाहा' इसको भी २१ बार जपता चाहिए। इन मंत्रोंके द्वारा पद्मासनसे कायोत्सर्गपूर्वक ध्यान करना चाहिये । इस प्रकार सकलीकरण विधानके द्वारा अपना मन शुद्ध करना चाहिए । भावार्थ-शौच दो प्रकार है एक बाह्य और दूसरा आभ्यन्तर । सो जल, मिट्टी आदिसे तो बाह्य शौच करना चाहिये और मन्त्रसे . आभ्यन्तर शौच करना चाहिये । सो ही लिखा है-'स बाह्याभ्यन्तरे शुचिः। . तदनन्तर अनुक्रमसे देव, शास्त्र, गुरुको पंचो पंचोपचारी पूजा करनी चाहिये । फिर सिद्धचक्रको पूजा करनी चाहिये । मागे उन्हीं पूजाओंको लिखते हैं । TRISHAIRATRAIIMSTORIE
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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