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________________ पर्चासागर [ १६१] । गुरुके केवल अपने ही भावोंसे फिर दीक्षा लो। इसीलिये उन्हें काष्ठसंघ स्थापन करना पड़ा। इससे सिद्ध होता है है कि केवल भावोंसे ऐसा ही फल मिला करता है इससे हठ करना योग्य नहीं । १४१-चर्चा एकसौ इकतालीसवीं प्रश्न--पूजा करनेवाला पूजनके लिये वस्त्र किस प्रकार धारण करता है। समाधान--जो भव्य पुरुष शांतिक और पौष्टिकके लिये भगवानको पूजा करता है उसे सफेद वस्त्र पहिन कर पूजा करनी चाहिये । यदि वह शत्रुको विजय करनेके लिये भगवानको पूजा करता है तो उसे श्याम ! ६ वा काले वस्त्र पहिन कर पूजा करनी चाहिये। यदि वह कल्याणके लिए पूजा करता है तो लाल वस्त्र पहिमना चाहिये । यदि वह किसी राजा आदिके भयको दूर करनेके लिए पूजा करता है तो उसे हरे रंगके वस्त्र पहिन कर पूजा करनी चाहिये। यदि वह ध्यान आदि प्राप्तिके लिए पूजा करता है तो उसे पीले वस्त्र पहिनना चाहिये । और यदि वह किसो कार्यको सिविके लिए पूजा करता है तो उसे पांचों रंगके वस्त्र पहिनने चाहिये। सोही लिखा है-- शांतो श्वेतं जये श्याम भने रक्तं भये हरित् । पीतं ध्यानादिसंलाभे पंचवर्ण तु सिद्धये ॥ इस प्रकार अलग-अलग कामनाको सिद्धिके लिये अलग-अलग पाँचों वर्णोके वस्त्र बतलाये हैं यदि इन पांचों वर्णोके वस्त्रोंमें भी कोई अयोग्यताके दोष आ जाय तो वह वस्त्र छोड़ देना चाहिये और दूसरा नवीन वस्त्र धारण करना चाहिये। १४२-चर्चा एकसो बियालीसवीं प्रश्न--वस्त्रोंमें ऐसा कौन-सा बोष है जिसके कारण उसे छोड़ देना चाहिये और नवीन लेना चाहिये। समाषान--ऊपर लिखे पांचों रंगोंके वस्त्रोंमेंसे कोई वस्त्र फट जाय, बहुत पुराना हो, छिन्न-भिन्न हो इन सब बोषोंसे रहित होनेपर भी मलिन हो, ऐसे वस्त्र पहिन कर दान, जिनपूजा, णमोकार आदि मन्त्रोंके अप, होम और शास्त्रोंके स्वाध्याय आदि नहीं करने चाहिये। यदि कोई इसमें हट करता है और इन दोषोंको । नहीं मानता तो उसका किया हुआ वान, पूजा आदि सब कार्य व्यर्थ जाता है । सोही उमास्वामी विरचित श्रावकाचारमें पूजाके प्रकरणमें लिखा है-- २१
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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