SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ यवि पूजा करनेवाला खड़े होकर पूजा करे तो भगवानका सिंहासन उसके नाभि तक आवेगा और फिर उसके नेत्रोंकी वृष्टि भगवानसे भी डेढ़ हाय ऊँधी रहेगी। जिससे अनेक अनर्थ उत्पन्न होंगे सो सब चिसागर विचार लेना चाहिये। १४०-चर्चा एकसौ चालीसवीं प्रश्न-यदि कहीं ऊपर लिखी डेढ़ हायकी ऊंचाईसे भी प्रतिमा नीची विराजमान हो तो क्या करना चाहिये ? अपरामचरितम्-ताशाचायHिSTA2 समाधान-जो भगवानके विराजमान करनेको वेवी डेढ़ हाथसे भी नीची रखते हैं उनके नीचसे नीच सन्तति उत्पन्न होती है। प्रदे ही मानो वहारमें लिखा है-- नीचे मिस्थितिं चके........." प्रश्न-यदि वेदो डेढ़ हाथसे भी ऊंची दो, तीन, चार हाथ ऊँची बना ली जाय और उसपर भगवान विराजमान किये जाय तो फिर तो कोई दोष नहीं आ सकता। तथा ऐसा करनेसे खड़े होकर पूजा करनेमें भी सुभीता होता है। समाधान-डेढ़ हायसे ऊँची वेदी बनानेको आज्ञा नहीं है इसलिए इससे ऊंची वेदी नहीं बनानी ! चाहिये । यदि कोई इससे ऊँची देवी बनाता है तो उसे आज्ञा भंग करनेका महादोष लगता है। सो पहले । सूक्तिमुक्तावलीका श्लोक देकर समझा हो चुके हैं । इसलिये आगमपर विश्वास करनेवालोंको आगमके लिखे अनुसार ही काम करना चाहिये । केवल अपनी बुद्धि के अनुसार वा मनोनुकूल चलना योग्य नहीं है। प्रश्न-इतना विवाद करनेकी आवश्यकता हो क्या है क्योंकि शुभ या अशुभ फल तो अपने भावोंके । अनुसार ही लगता है इसलिये अपने भाव शुद्ध रखना चाहिये । शुद्ध भावोंके बिना सब क्रियाएँ व्यर्थ हैं। समाधान--यह कहना भी एकान्तवाव है क्योंकि राजा, कच्छ, महाकच्छ, मारीचि आदि चार हजार राजाओंने श्रीऋषभदेव भगवानके साथ केवल उनको भक्ति और शुभ भावोंसे जिनदीक्षा धारण की थी परन्तु ॥ [ १६ वह उनको दीक्षा आगमको आज्ञाके अनुकूल नहीं थी इसीलिये सबको भ्रष्ट होना पड़ा। भ्रष्ट होकर उन्होंने 1 अनेक प्रकारके मिथ्यात्वका प्रचार किया। इसी प्रकार कुमारसेनने पहले तो संन्यासका भंग किया फिर बिना।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy