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________________ [२७] ४५८ ची संख्या पृष्ठ संख्या पाया इनका मरण किस महीनेको किस तिमिमें होगा ५७ श्री पावनायके तपश्चरण करते समय उपसर्ग हुवा २१ असुरकुमारोंके इन्द्र, चमरेन और वैरोचन, सौधर्मेन्द्र था और उपसर्गके समय धरणेंद्र पद्मावतीने उनके मस्तक और ईशानेन्द्रसे युद्ध करने गये थे तब उन्होंने वन पर उस उपसर्गको दूर करने के लिये सर्पका फण बनाया प्रहार किया था और फिर वे दोनों भागकर पातालमें पा तदर्नर भगवानको केवलज्ञान उत्पन्न हुमा । केवलछिपे थे सो क्या यह कहावत सत्य है ज्ञानके समय फणा नहीं रहा था तथा मति केवलज्ञानके यह कहावत दिगम्बर आम्नायमें प्रसिद्ध क्यों है ४५८ समयको बताई जाती है और उस समय उनके मस्तक १२२ भवनवासो, व्यन्तर, ज्योतिषो देव किस तपसे होते हैं ४५८ पर फणा या नहीं फिर अब उनकी मूर्तिपर फणा क्यों २२३ चतुर्णिकाय देवों में महा ऋद्धियोंको धारण करनेवाले बनाया जाता है। इन्द्रादिक देव अपने आयु पूरीकर किस गतिको प्राप्त होते हैं हम तो परीक्षाप्रधानी हैं आज्ञाप्रधानी नहीं है इसका समाधान २२४ इस मध्यलोकमें जंबूद्वीपसे लेकर स्वयंभूरमण समुद्र तक २२९ पहिले हंगावसर्पिणो कालदोषसे विपरीत आदि पांच कालचकका वाव किस प्रकार है अर्थात् सुखमासुखमा प्रकारके मिथ्यात्व बतलाये सो इन पांचों मिथ्याखोंका आदि छहों कालोंमेंसे कौन-कोर का कही पसंद है । स्वरूप क्या है। २२५ यह ीय पात्रदानसे तो उत्कृष्ट वा मध्यमादिक भोग मिथ्यात्वोंकी उत्पत्ति भूमियोंमें जन्म लेता है परन्तु कुभोगभूमियोंमें किस सूर्यपूजाको उत्पत्ति कारणसे उत्पन्न होता है ४६२ जेनमतमें उत्पन्न हुआ विपरीत मिपाव २२६ मौनव्रतसे भोजन न करना सदोष बतलाया सो मौन | २३० ज्योतिषी देव मेरु पर्वतकी दक्षिणा देते हैं सो कितने कहाँ-कहाँ धारण करना चाहिये। । अन्तरसे देते हैं २२७ छठे कालमें मनुष्य कैसे होंगे तथा उनका व्यवहार कैसा । | २३१ सीसरे वर्ष में एक अधिक मास होता है इसको ज्योतिषी २२८ श्री महावीर स्वामोको तथा श्री पावनाष स्वामीको बादि सब मानते हैं सो जैनमतके अनुसार मानना ठीक है सपश्चरण करते समय उपसर्ग हुआ था परन्तु उस याना। समय तीनों लोकोंके इन्त्रोंको व चतुर्णिकायके देवोंको होनमास किस प्रकार होता है। मालूम नहीं हुआ था क्योंकि श्री पाश्वनाथ पर सात अधिकमासमें कार्य अकार्यकी विधि किस प्रकार है ५१५ दिन तक बराबर उपसर्ग होता रहा सात दिनके बाद २३२ तीर्थंकरोंके कल्याणकोंमें जो ऐरावत हाथी आता है वह घरणेंद्र पद्मावत्तो आये और उपसर्ग दूर हुआ मो धरणेंद्र एक लाख योजन ऊँचा है या एक लाख योजन उसका पधावती पहले क्यों नहीं आये। इसका कारण क्या है ४९४ विस्तार है।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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