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पर्यासागर । १५२ ]
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करण आदि प्रतिमाके सामने किया जाता है जो कि परम्परासे चला आ रहा है उसका निषेध यहाँपर नहीं । किया है। अपने घर आदिम बिना मूसिके अतदाकार स्थापना कर पूजा नहीं करनी चाहिए।
१३६-चर्चा एकसौ छत्तीसवीं प्रश्न--भगवानको पूजाके समय स्नानादिक किस विधिसे करना चाहिये ।
समाधान---भव्य जीवोंको शय्यासे उठते ही सबसे पहले अपने मनमें कायोत्सर्गकी विषिसे नौ बार पंच नमस्कार मन्त्रका जप करना चाहिये । पीछे मलमूत्रका त्याग कर हाथ-पैर धोकर एक वा दो पवित्र वस्त्र पहिन कर तथा आसन और पोछीको लेकर किसी एकान्त पवित्र स्थानमें पूर्वको ओर अथवा उत्तरको ओर मुख कर सामायिक करना चाहिए । तदनन्तर विधिपूर्वक भगवान् अरहन्तदेवको पूजा करनी चाहिये । उसको । कुछ थोड़ी-सी विधि लिखते हैं। भगवान की पूजा करनेवाले पुरुषको सबसे पहले अपने हाथ-पैर धो लेना चाहिये फिर पश्चिमको ओर मुख कर बैठकर शुद्ध जलसे कुल्ला करता हुआ वतीन करना चाहिये। तदनन्तर फिर । कर पूर्वकी ओर मुख कर प्रासुक जलसे स्नान करना चाहिये । फिर खड़े होकर किसी धुले वस्त्रसे शरीर पोंछ कर सफेद और शुद्ध वस्त्र पहन लेने चाहिये। पूजा करनेके लिए धोती, दुपट्टा ये दो ही वस्त्र धारण करना , चाहिये ऐसी आम्नाय है। सोही मास्वामी विरचित श्रावकाचारमें लिखा है।
ऊपर लिखी हुई विधिके अनुसार स्नान करके पूर्वकी ओर मुख करके अथवा उत्तरको ओरको मुख करके भगवानकी पूजा करनी चाहिये । भावार्थ-जो भगवानकी प्रतिमा उत्तरकी ओर मुख कर विराजमान हो तो पूजा करनेवालेको पूर्वकी ओर मुख कर बैठकर पूजा करनी चाहिये। यदि भगवानका मुख पूर्व दिशाको
ओर हो तो पूजा करनेवालेको उत्तरको ओर मुख कर बैठकर भगवान्की पूजा करनी चाहिये। ये वाक्य श्रीजमास्वामीके हैं। इससे सिद्ध होता है कि इन दो विशाओंको छोड़कर बाकोको दक्षिण, पश्चिम,आग्नेय,नैऋत्य, वायव्य, ईशान इन छहों दिशाओंकी ओर मुख करके भगवानको पूजा नहीं करनी चाहिये। कितने ही लोग भगवान के सामने खड़े होकर पूजा करते हैं परन्तु उनके जित दिशा विदिशाओंका बोष आता है। क्योंकि भगवानकी आमा पूर्व, उत्सर वो ही दिशाओंकी ओर मुख करके पूजा करने की है । वाको विशाओंकी ओर मुख करके पूजा करनेका निषेध है।