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________________ । पर्यन्त चौबीसों तीर्थहरोंने जन्म लिया है, जिन-जिन तपोवनोंमें बीक्षा धारण को है, जहाँ-जहाँ केवलज्ञान 1 उत्पन्न हआ है तथा कैलाश. सम्मेदशिखर. गिरनार. चम्पापुर, पावापुर आवि जिन-जिन स्थानोंसे मोक्ष प्राप्त ॥ चर्चासागर किया है, उन-उन स्थानोंमें वा क्षेत्रों में जाकर उनको जल, गन्धादिकसे पूजा करना सो क्षेत्रपूजा है । सो हो । R! लिखा है जिण जम्मण णिक्खवण णाणपत्ती य मोक्ख संपत्ति । णिसि ही सुखेत्तपूया पुवविहाणेण कायवा ॥ ४५३ ॥ चौबीस तीर्थरोंके गर्भ, जन्म, तप, ज्ञान, मोक्ष, कल्याणक जिन-जिन महीनों में जिन-जिन पलोंमें व जिन-जिन दिनोंमें हुए हैं, उन्हीं दिनोंमें ऊपर लिखी विधिपूर्वक जल, गन्ध आउिसे पूजा प्रभावना करना तथा । उसी कालमें इनुरस, वी, दूध, दही और सुमन्धित जसो भरे हुए अनेक प्रकारके पवित्र कलशोंसे भगवान् अरहन्तदेवको मूर्तिका अभिषेक वा महाभिषेक करना, रात्रि जागरण करना, संगीत शास्त्रोंके नियमानुसार नाटक आदि करना, षड्ज, ऋषभ, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद इन सातों स्वरोंसे, छहों रागोंसे, के छहों रागोंको तीसों भार्याओंसे तथा उनके आठों पुत्रोंसे अनेक प्रकारको राग-रागिनियोंसे सुशोभित ऐसे श्री जिनेन्द्रदेवके गुणों के समूहका वर्णन करना, गाना, स्तुति करना सो सब कालपूजा है तथा नन्दीश्वर पर्वके । (अष्टाहिकापर्वके ) आठों दिन तक तथा व्रतोंके दिनोंमें भगवान जिनेन्द्र देवकी महिमाको प्रमट करना सो । सब कालपूजा है। भावार्थ-यह कालपूजा उसी कालमें होती है अन्य कालमें नहीं होती । सो हो लिखा है गम्भावयारजम्माहिसेयणिस्खवणाणणिवाण । जम्हि दिणे संजायइ जिणण्हवणं तहिणे कुज्जा ।। ४५४ ॥ इवखुरससप्पिदहिखीरं गंधजलपुण्णविविहकलसेहिं । णिसि जागरणं च संगीय गाउपाइहि कायव्वं ।। ४५५ ।।
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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