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________________ पर्यासागर [ १४५ ] माTERTAIनIRALINE फिर अशुभकर्मके उवयसे किसी कारणको पाकर व्रत गल आय छूट जाय तो उसका क्या प्रायश्चित्त है और दुबारा उसको पालन करनेको विधि क्या है ? समाधान-जो कोई बती पुरुष विधिपूर्वक व्रत ले लेवे और फिर रोग, शोक या अन्य किसी कारणसे तको मर्यादामें एक-दो आदि कुछ उपवास बाफी रह जाय तथा ऐसी हालतमें यह व्रत छूट जाय, भ्रष्ट हो जाय तो फिर उस प्रतीको चाहिये कि वह फिर प्रारम्भसे उस व्रतको करे अर्थात् उस व्रतके लिये जो पहले व्रत, उपवास किये थे वे सबवत भंगके पापको निवृत्ति के लिये प्रायश्चित्तमें चले गये अब फिर उसे प्रारम्भसे ही प्रत धारण करना चाहिये । ऐसा अनुक्रम है सो ही वसुनंविश्रावकाचारमें लिखा है-- जइ अंतरम्मिकारणवसेण एको व दोव उववासो। गक ततो खूलाओ घुमो वि सा होइ कायबो ॥ २६१ ॥ इसकी टोका इस प्रकार है-- यद्यन्तरकाले कारणवशेन कोपि वा द्वयोपवासाः। न कृताः तहिं मूलात् पुनरपि सा विधिर्भवति तत्कर्तव्या॥ अर्थात् यदि बीचमें किसी कारणसे एक वा दो उपवास न किये हों तो प्रारम्भसे ही उसकी विधि करनी चाहिये । यदि वह ऐसा न करे तो उसे महापापी समझना चाहिये । प्रश्न-वत भंग करनेसे महापाप लिखा है सो वह कौन सा महापाप लगता है ? समाधान—जो कोई जीव अपने गुरुसे यम वा नियमरूप कोई व्रत ले लेखे और फिर चारित्रमोहनीय कर्मके उदयसे उस प्रतको भंग कर देवे यह पुरुष एक हजार जिन मंदिरों के भंग करनेके समान पापका भागो होता है। इसके समान और कोई पाप नहीं है। इसीलिपे उसको महापापी कहते हैं । सो ही श्रीश्रुतसागरप्रणीत व्रतकथाकोशमें सप्त परमस्थान व्रतको कथा कहते समय लिखा है गुरून् प्रतिभुवः कृत्वा भवत्येकं धृतं व्रतम् । सहस्रकुटजैनेंद्रसद्मभंगाघभागलम् ।। इसलिये व्रत भंग करनेका प्रायश्चित्त अवश्य लेना चाहिए । s treamPAPSPSIPAHESTERNPranaya MARRESPOHam १९
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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