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________________ पासागर १३३ । इस प्रकार लिखा है यदि इससे विशेष जानना हो तो तत्त्वार्थसूत्रको टीका सर्वार्थसिखिसे जान लेना। चाहिये। ११८-चर्चा एकसौ अठारहवीं प्रश्न--चक्रवर्ती, नारायण आदि कितने ही पुण्याधिकारो पुरुषोंके हजारों स्त्रियाँ होती हैं तथा चक्रवर्ती रातमें पटरानी के ही महलमें रहते हैं परन्तु पटरानीके पुत्र नहीं होता वह बंध्या ही होती है तथा अन्य ) । रानियोंके पुत्राविक होते हैं और चक्रवतोंके औदारिक शरीरका उदय रहता है । अर्थात् उसके औदारिक शरीर । होता है । इसलिये अन्य रानियोंके पुत्रादिक किस प्रकार उत्पन्न होते हैं ? समाधान-चक्रवर्ती आदि कितने ही पुण्य पुरुषोंके औदारिक शरीर तो होता है परन्तु वह विक्रियारूप परिणत हो जाता है। विक्रियाके दो भेद हैं एक पृथक् विक्रिया और दूसरी अपृथक् विक्रिया 1 जो विक्रियासे अपने शरीरके अनेक रूप बना लेवे उसको पृथक् विक्रिया कहते हैं । जैसे चक्रवतो छयायानवे हजार शरीर बना लेता है तथा जो अलग अलग शरीर तो न बना सके किन्तु विष्णुकुमारके समान छोटा बड़ा शरीर बना सके उसको अपृथक् विक्रिया कहते हैं। ऊपर लिखे चक्रवर्ती आदि पुण्य पुरुषोंके ये दोनों ही विक्रियाएँ होती हैं । इसलिये वे अपनी विक्रियासे अनेक प्रकारको चेष्टाएँ वा अनेक शरीर करते रहते हैं। इस प्रकार । गोम्मटसारके महामार्गणाधिकार में योग मार्गणामें लिखा है वादरतेऊवाऊ पंचेंदियपुण्णगा विगुव्वति । ओरालियं सरीरं विगुव्वणप्पं हवे जेसि ॥ २३३ ॥ अर्थात-बादर तेजस्कायिक और बादर वायुकायिक ये दो बादर स्थावर कायके जीव तथा कर्मभूमि में उत्पन्न हुए चक्रवर्ती पुण्याधिकारी पुरुष सेनी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक, मनुष्य भोगभूमिमें उत्पन्न हुए सैनी पंचेन्द्रिय । पर्याप्तक तियं च तथा मनुष्य ये सब अपने औवारिक शरीरको विक्रियारूप परिणमा लेते हैं। जिनके औवारिक शरीर ही विक्रियारूप होता है उनके किसीके पृथक् विक्रिया और कितने ही के अपृथक् विक्रिया होती है । तथा किसने ही के दोनों प्रकारको विक्रिया होती है। ऐसा समझ लेना चाहिये। mutanaHaasarasvara
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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