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________________ सागर कुच्छियदेवं धम्म कुच्छियलिंग च वंदए जो दु । लज्जाभयगारवदो मिच्छादिट्ठी हवे सो हु॥ १२ ॥ १०१-चर्चा एकसौएकवीं प्रश्न--सम्यग्दृष्टिके विशेष चिन्ह क्या है ? समाधान--सम्यग्दृष्टिके भी विशेष विल अन्य शास्त्रोंमें विस्तारसे लिखे हैं, यहाँ संक्षेप लिखते हैं। जो भूख, प्यास आवि अठारह दोषोंसे रहित वीतराग सर्वशदेवका ही श्रदान करता है, हिंसाविक समस्त पारोंसे रहित श्रेष्ठ धर्मका श्रद्धान करता है, तथा सब तरहके परिग्रह और आरंभोंसे रहित निग्रंथ गुरुका ॥ श्रदान करता है वही सम्यग्दृष्टी है । सो हो मोक्षप्राभूतमें लिखा हैहिंसारहिये धम्मे अट्ठारहदोसविवज्जिए देवें । निग्गथे पध्वयणे सद्दहणं होइ सम्मत्तं ॥१०॥ १०२-चर्चा एकसौ दोवीं प्रश्न-भगवानके समवशरणमें जो मानस्तंभ आदि होते हैं उनको ऊंचाई का प्रमाण किस प्रकार से होता है ? समाधान-समवशरणके मानस्तम्भ, ध्वजास्तम्भ, चैत्यवृक्ष, सिद्धार्थवृक्ष, स्तूप, तोरण, कोट, गृह, बनवेविका, बन, पर्वत आदि की ऊँचाई भगवान् तीर्थकरकी ऊँचाईसे बारह गुणी होती है। भावार्थ-- भगवान्के । शरीरकी जितनी ऊंचाई होती है उससे बारह गुणी ऊंचाई इन सबको समझ लेना चाहिये । सो ही सकलकोति ॥ विरचित आदिपुराणमें लिखा है। मानस्तंभा ध्वजास्तंभा चैत्यसिद्धार्थपादपाः । स्तूपाः सतोरणाः गेहाः प्राकारा वनवेदिकाः॥ १४ ॥ बनादयो बुधैः प्रोक्ता उत्सेधेन द्विषड्गुणाः ।जिनांगोत्सेधतश्चैषां देानुरूपविस्तरः॥१५॥ पार्श्वपुराणमें भी लिखा है-- । मानस्तंभाश्च प्राकाराः सिद्धार्थचैत्यपादपाः। सतोरणाःगृहाः स्तंभाः केतवोवनवेदिकाः॥१७ ।। १०,
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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