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सागर १०२]
महायतामन्याडमिन्स
इसका विशेष स्वरूप इस प्रकार है-वो इन्द्रियके भव ८० तेइन्द्रियके ६० को इन्द्रियके ४० पंचन्धियके । २४ । इन पंचेन्द्रियके २४ भवों में भी तीन भाग हैं। तहाँ मनुष्यों में लब्ध्यपर्याप्तकके भव ८, संशी पंचेन्द्रिय लन्ध्यपर्याप्तकके भव ८ तथा असंती पंचेंद्रिय लब्ध्यपर्याप्तकके भव ८ इस प्रकार त्रस जीवोंके सब मिलाकर २०४ जन्म मरण होते हैं तथा पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और साधारण वनस्पति कायिक इन पांचोंके स्थूल और सूक्ष्मके भेदसे दस भेद होते है। तथा प्रत्येक बनस्पतिका एक स्थूल ही भेव होता है । इसके वो भव नहीं होते । ये सब ग्यारह भेद होते हैं इनमें प्रत्येक के छह हजार बारह जन्म मरण होते हैं इसलिये ग्यारह प्रकारके स्थावर जीवोंके जन्म मरणके छयासठ हजार एक सौ बत्तीस ६६१३२ जन्म मरण होते हैं। इनमें पहले त्रस जीवोंके छह स्थानोंके २०४ जन्म मरण मिला देनेसे सब मिल कर ६६३३६ भेद हो जाते हैं। ये सब संसारी जीवोंके क्षुद्रभव हैं । सो ही गोमट्टसारमें लिखा हैसीदी सट्टी तालं वियले चउवीस होति पंचक्खे । छावर्द्धिं च सहस्सा सयं च वत्तीसमेयक्खे ॥ पुढविदगागणिमारुद साहारणथूलसुहमपत्तेया। एदेसु अपुण्णेया एक्केक्के बार खं छक्कं ॥
इस प्रकार एक श्वासके अठारह भाग आयुके प्रमाणसे एक अन्तर्मुहूर्तमें सत्रह स्थानों में यह संसारी, जीव मिथ्यात्वके उदयसे सर्वोत्कृष्ट क्षुद्रभव ६६३३६ धारण करता है।
___६३-चर्चा तिरानवेवीं प्रश्न-चौबीस तीर्थंकरों से ऐसे कौन-कौनसे तीर्थकर हैं जिनका विवाह नहीं हुआ है।
भावार्थ-जो बालब्रह्मचारी हैं, विवाह किये बिना ही कुमारावस्थामें दीक्षा धारण कर तपोवनमें चले गये ऐसे तीर्थकर कौन-कौन हैं?
समाषान-श्रीवृषभदेवसे लेकर श्रीवद्धमान पर्यंत चौबीस तीर्थकरों से वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर ये पांच तीर्थकर कुमारकाल में ही जिनवीक्षा धारण कर महातपस्वी हुए हैं सोही लिखा हैवासुपूज्यस्तथा मल्लिनेमिः पाश्वोऽथ सन्मतिः।कुमाराः पंच निष्कांताः पृथिवीपतयः परे॥
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