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बकने लगता है ।। मोह ।७। मब ८ प्रमाव ।९। कलह ।१०। स्नेह बन जाता है ।११। परिणामोंमें भ्रम हो । जाता है ।१२। घूमनेकी प्रवृत्ति हो जाती है।१३। मौन धारण कर लेता है ।१४। विचार नष्ट हो जाता है।१५।।
व्याकुलता बढ़ जाती है ।१६॥ प्रसंग वा अधिक विषय सेवन की इच्छा हो जाती है ।१७। और कामवासना बढ़ बर्चासागर
जाती है। इस प्रकार भांप पीनेसे १८ बोष उत्पन्न हो जाते हैं । इसलिये ऐसा कौन विचारशील है जो इसका [९७]
सेवन करे ? भावार्थ-विचारशील तो इसका सेवन नहीं करते, अज्ञानी और मूर्ख ही इसका सेवन करते हैं। सोही रत्नाकरमें लिखा है
निद्राहास्यचोगतिश्चपलता मूर्छा महाजल्पनं, व्यामोहः प्रमदः प्रमादकलहस्नेहाः विचारे भ्रमः। धूमों मौनविचारहानिविकलप्रासंगकामातुरं,
भृगी चाष्टदशप्रदोषजननी कैः पंडितैः सेव्यते ॥ ५५ ॥ इसलिये मूर्ख लोग ही इसका सेवन करते हैं।
आगे भांग पोनेवालोंकी जो वशा होती है उसे एक उदाहरण देकर विखलाते हैं। एक भांग पीनेवाला पुरुष किसी भांगके अखाड़े में भाग लेकर गया। वहां एक शिलापर भांग पीसकर छानकर पी और फिर उस शिलाको मस्तकके नीचे रखकर किसी छाया में सो गया। थोड़ी देर बाद ही वहाँपर दस आया। उसको वहां पर वह पीसनेकी शिला दिखाई नहीं दी, तलाश करने पर उस सोनेवालेके मस्तकके नीचे मिली । तब उसने उसके मस्तकके नीचे धीरेसे एक पत्थर रख दिया और वह शिला निकाल ली। तथा
अपनी भांग पीस छान पीकर वह कहीं बाहर चला गया। तदनंतर उस सोनेवालेकी आँख खुली तब वह उस । भांगके नशेमे ही सोचने लगा कि मैं तो पहले शिलावाला था, पाषाणवाला तो मैं नहीं था। इससे मालूम
होता है कि में बदल गया जो पहले था सो नहीं रहा। मैं और हो हो गया । और पत्यरवाला मैं हूँ नहीं।। ऐसा विचारकर वह अखाड़ेके लोगोंसे पूछने लगा कि "हे मित्रो ! मैं जो पहले था वहीं हूँ या बदलकर और
हो गया हूँ। मैं तो पाषाणवाला नहीं था शिलावाला था परन्तु अब पत्थरवाला हो गया सो में बदल हो गया। । पहलेबाला नहीं रहा" इस प्रकार वह बार-बार बकने लगा। तब लोगोंने उसे समझाया कि तू पहलेका हो,
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