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________________ सागर २] करना ।५। वीर्यपात हो जाना।। तुःख वा पीड़ा होना कामज्वर वा वाह होना।८। अन्नमें अरुचि होना ।। और मूळ आता । १० । | वश काम कहलाते है । मस गुमा कर देनेसे १८००० भेव हो जाते हैं। इसके सिवाय इस शोलके और प्रकारसे भी १८००० भेव हो जाते हैं जिनसे शीलांग रथ बन जाता । है । उन्हींको आगे लिखते हैं । रत्नाकरमें लिखा है जेणो करंति मणला णिज्जिय आहार सणि सो इंदी। पुढवीकायारंभा खंति जुआ ते मुणी वंदे । अर्थात् मन, वचन, काप, कृत, कारित, अनुमोदना, चार संशा, पांच इंद्रियाँ, पृथ्वीकाय आदि बश प्रकारके जीवोंके आरम्भ और उत्सम क्षमा आदि बशा प्रकारके धर्म, इनसे परस्पर गुणा करनेसे १८००० भेद । हो जाते हैं इन १८००० भेदोंसे बने हुए शीलरूपी रथको चलानेवाले महामुनिराज होते हैं इसलिये ऐसे मुनि॥ राजको हम नमस्कार करते हैं।। अब आगे शीलांग रयकी रचनाका यंत्र लिखते हैं
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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