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सागर
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करना ।५। वीर्यपात हो जाना।। तुःख वा पीड़ा होना कामज्वर वा वाह होना।८। अन्नमें अरुचि होना ।। और मूळ आता । १० । | वश काम कहलाते है । मस गुमा कर देनेसे १८००० भेव हो जाते हैं।
इसके सिवाय इस शोलके और प्रकारसे भी १८००० भेव हो जाते हैं जिनसे शीलांग रथ बन जाता । है । उन्हींको आगे लिखते हैं । रत्नाकरमें लिखा है
जेणो करंति मणला णिज्जिय आहार सणि सो इंदी।
पुढवीकायारंभा खंति जुआ ते मुणी वंदे । अर्थात् मन, वचन, काप, कृत, कारित, अनुमोदना, चार संशा, पांच इंद्रियाँ, पृथ्वीकाय आदि बश प्रकारके जीवोंके आरम्भ और उत्सम क्षमा आदि बशा प्रकारके धर्म, इनसे परस्पर गुणा करनेसे १८००० भेद ।
हो जाते हैं इन १८००० भेदोंसे बने हुए शीलरूपी रथको चलानेवाले महामुनिराज होते हैं इसलिये ऐसे मुनि॥ राजको हम नमस्कार करते हैं।।
अब आगे शीलांग रयकी रचनाका यंत्र लिखते हैं