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________________ जासागर विष, उपविष, मादक (मशा उत्पन्न करने वाले) और पौष्टिक पदार्थ पारा आदि धातु, उपधातु, सोने, चांदी, मोती माविकी भस्म, रस, रसायन, बलबान और वीर्य बढ़ानेवाली औषषियाँ तथा अन्य प्रकारके गरिष्ठ • भोजन नहीं करना। ५। स्त्रियों के शृंगार संबंधी शास्त्रोंको न पढ़ना न सुममा । ६ । स्त्रियोंके आसनपर नहीं बेठमा तथा उनकी शव्यापर नहीं सोना। ७। कामकथा न कहना न सुनना। ८ । भोजन पान आविके द्वारा पेटको पूरा नहीं भरना।। इस प्रकार ब्रह्मचर्यको नौ बार है सो ये सब ब्रह्मचर्यको रक्षाके लिये हैं। जिस प्रकार चावल, गेहूँ आदि अन्नोंके खेतोंमें उनको रक्षाके लिये चारों ओर कांटोंको बाइ लगा देते हैं उसी प्रकार ब्रह्मचर्य को रक्षाके लिये ये ऊपर लिखी नौ बार हैं। जिस प्रकार बिना बाडके खेत नष्ट हो जाते हैं उसी प्रकार इन नौ बाओंके बिना शीलका भंग हो जाता है। अब आगे अठारह हजार शीलोंके भेवोंको लिखते हैं। चैतन्य रूप स्त्रियोंके ३ भेव हैं मनुष्यणी, देवा-धी गना और सियंचनी तथा अचंतन स्त्रीला एक मंद है का पत्थरकी तथा चित्रामकी किसी स्त्रीका रूप बना अचेतम स्त्री है। इस प्रकार स्त्रियोंके चार भेव होते हैं। इनका त्याग मन, वचन, कायसे तथा कृत, कारित, अनुमोदनासे किया जाता है सो स्त्रियोंके ४ भेदोंको मन, बचन, कायकी ३ संख्यासे गुणा करनेसे १२ भेव होते हैं और इन बारहको कुस, कारित, अनमोवनाकी ३ संख्यासे गणा करनेसे ३६ भेद होते हैं। ये छत्तीसों प्रा भेव पांचों इंद्रियोंसे त्याग किये जाते हैं इसलिये स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु, श्रोत्र इन इन्द्रियोंको ५ संख्यासे। गुणा करमेसे १८० भेद हो जाते हैं। इन १८० भेवोंको वश प्रकारके संस्कारोंसे त्याग किया जाता है इसलिये १८० को १० से गुणा कर वेनेसे १८०० भेद हो जाते हैं। उन १० संस्कारों के नाम ये हैं। स्नान उबटन आदि लगाना, शृंगार करना, राग बढ़ाने वाले कार्य करना, हंसी बिनोद आदि रूपसे क्रीड़ा करना, संगीत बाध ( गाना बजाना) विषय सेवनका संकल्प करना, वर्षगमें मुख देखना, शरीरको शोभा बढ़ाना, पहले भोगी । हुई स्त्रियोंका स्मरण करना और मनमें चिताको प्रवृत्ति करना। ये दश संस्कार कहे जाते हैं। तथा इन । १८०० भेदोंका त्याग कामके वश प्रकारके वेगोंसे भी किया जाता है इसलिये १८०० को १० से गुणा कर वेनेसे १८००० भेद हो जाते हैं । कामके १० वेग ये हैं। स्त्रीके मिलनेकी चिंता होना।। स्त्रीके देखनेको इच्छा होना ।२। दीर्घ श्वासोच्छ्वास लेना ( लम्बी सांस लेना) । ३ । उन्मत्त हो जाना ।४। अपने प्रागों में भी संदेह ।। [ ११
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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