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________________ पर्चा संख्या पृष्ठ संख्या पर्चा संस्था पृष्ठ संख्या १०७ भरतने कितने ब्राह्मण बनाये ११७ चौदह मार्गणा और चौदह गुणस्थानों में सांतराके आठ १०८ पांचों महाविद्वानों में ब्राह्मण हैं या नहीं। सामायिक | भेद कौन हैं उनका स्वरूप संख्या विधान क्या है। १३१ छह भेद कौन-कौन हैं ११४११८ चक्रवती अचाका आदिक अनेक रानियों होती हैं और १०१ घरमें जो बारह अंगुल तककी प्रतिमा रहती है उनको वे पटरानीके महलोंमें रहते हैं फिर अन्य रानियोंक ऊँचाईका क्या फल है पुत्रादिक किस प्रकार होते हैं ११० तीसरे गुणस्थानमें न मरण है न वायुबंध है फिर तोसरे ११९ आहारक शरीरको उत्कृष्ट जघन्य स्थिति कितनी है १३४ गुणस्थान वाला मरकर अन्यगतिमें किस प्रकार १२० आहारक शरीरके समय मुनि गमनागमन करें या नहीं, जाता है विक्रिया ऋसिसे विक्रिया करें या नहीं १३४ १११ पकश्रेणी चढ़ने वाले योगीश्वरोके श्रेणी चढ़ते समय १२१ औदारिक, वैकियिक, आहारक, तेजस, कार्मणको उत्कृष्ट कौनसा संहनन होता है। जघन्य स्थिति कितनी है। ११२ अविका आचार्य, साधुओंको वंदना किस प्रकार करती है। कितनी दूरसे करती है | १२२ एक एक देवके कमसे कम और अधिकसे अधिक कितनो। १२३ सदाशिव आदि अन्य मत वाले जीवका स्वरूप किस देवांगनायें होती हैं। प्रकार मानते हैं। | १२३ नरक और देवदतिमें कषायोंके उदयकालकी जघन्य ये सब वेदको मानते हैं फिर सबका मत विरुद्ध क्यों है उस्कृष्ट स्थिति कितनी है। इनमें विरोध कहाँ कहाँ है। १९ | १२४ परिहारविशुबि संयमका स्वरूप निरक्ति उत्पत्ति आदि १४ श्री सम्मेदशिखरको यात्राका सबसे उत्कृष्ट फल क्या है १२४ क्या है। वर्षाऋतुमें जघन्य साधु भी गमन नहीं करते फिर अभव्यको यात्रा क्यों नहीं होती। १२८ परिहार विशुद्धि वाला क्यों करता है। १३६ जिस भव्यने नरकायुका बंष कर लिया है उसको यात्रा होतो है या नहीं। १२५ इन्द्रियोंके विषय कहीं तेईस और कहीं सत्ताईस लिखें कैसे वस्त्र पहिनकर यात्रा करनी चाहिये १२९ है सो इनमें विशेषता क्या है। रावणमे नरकायुका वध कर लिया था फिर भी वह । १२६ नारकियों के शरीरका रंग कैसा है। यंदनाके लिए गया था। १२९ १२७ पृथ्वीकायादिक जीवोंके शरीरका रंग कैसा है ११५ निवल्पपर्याप्तक, लब्ध्यपर्याप्तक किस कर्मके उदयसे । १२८ विग्रहगतिमें रहने वाले अनाहारक जीवोंके कार्मण योग १२९ के शरीरका वर्ण कैसा है ११६ निवस्यपर्याप्तक लन्ध्यपर्याप्तकके कौनसा गुणस्थान । १२९ मिश्रयोग वाले जीवके शरीरका बर्ण कैसा है होता है। १३१ | १३० कृष्णादि छहों लेश्यावालोंके लक्षण क्या क्या है १४. १३९ Human
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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