________________
सिगर
६]
र
S
चीड फार करने रूप हो, चाहे अग्नि या गर्म लोहे द्वारा दागने रूप हो और चाहे लंघन आदि किसी अन्य दुख रूप हो। इन सब आसुरी प्रयत्नोंके द्वारा भी उसके प्राणोंकी रक्षा करे और इस प्रकार रक्षा करते हुए भी वह प्राणी मर जाय अथवा जीवित हो जाय परन्तु उस धीड फाड़ या दाग वा लंघन आदि पीड़ा रूप प्रयत्नका फल क्यारूप ही होता है क्योंकि उसके परिणाम उसकी रक्षा करनेके थे ।। १३ ।। इस प्रकार हिंसाके फलमें भी बोड़ा बहुतपन आता ही है । अतएव यत्नाचारपूर्वक रहकर दया पालन करना चाहिये और अपनी शक्तिके अनुसार ऊपर लिखी सब प्रकारको हिंसाका त्याग कर देना चाहिये । यही जैन सिद्धांतका सार है। सो हो पुरुषार्थसिद्धियुपाय में लिखा है
अविधायावि हि हिंसां हिंसाफलभाजनं भवत्येकः । कृत्वाप्यपरो हिंसां हिंसा फलभाजनं न स्यात् ॥ ५१ ॥ एकस्याल्पा हिंसा ददाति काले फलमनल्पम् । अन्यस्य महाहिंसा स्वल्पफला भवति परिपाके ॥ ५२ ॥ एकस्य सैव तीव्र दिशति फलं सैव मन्दमन्यस्य । व्रजति सहकारिणोरपि हिंसा वैविध्यमत्र फलकाले ॥ ५३ ॥ प्रागेव फलति हिंसा क्रियमाणा फलति फलति च कृतापि । आरभ्य कर्तुमकृतापि फलति हिंसानुभावेन ॥ ५४ ॥ एकः करोति हिंसां भवन्ति फलभागिनो बहवः । बहवो विदधति हिंसां हिंसा फल भुग्भवत्येकः ॥ ५५ ॥ कस्यापिदिशति हिंसा हिंसा फलेमकमेव फलकाले । अन्यस्य सैव हिंसा दिशत्यहिंसाफलं हिंसा फलमपरस्य तु ददात्यहिंसा तु इतरस्य पुनहिंसा दिशत्यहिंसाफलं
विपुलम् ॥ ५६ ॥ परिणामे । नान्यत् ॥ ५७ ॥
[a