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________________ Rasa परन्तु हिंसामें थोड़ा बहुत यह दो प्रकारका फल सा ? योकि समान हिंसामे समान फल होना चाहिये ।। फलमें न्यूनाधिकता क्यों होती है ? समाधान-ऊपर हिंसा बतलाई है उसके द्रव्यहिंसा, भावहिंसा आधि कितने ही भेव होते हैं। जैसे पिसागर [ ] किसीने बाह्य हिंसा तो की नहीं परन्तु अपने योगोंके द्वारा प्रमावरूप प्रवृत्ति की अर्थात् मन में हिंसाका विचार किया और वचनसे भी हिंसाका प्रयोग किया तो उसके भी हिंसाका ही फल लगेगा ॥१॥ अथवा किसीने योगोंके द्वारा कोई प्रमाव नहीं किया अर्थात् मन, वचनमें जीयोंकी रक्षा परिणाम रखते हुए बड़े यलाचारसे गति की । ऐशी अवस्था में उसके द्वारा मादा हिंसा हो नहीं सकती । तथापि यदि उससे हिसा हो जाय तो । उसके भाव क्यारूप हो समझे जायेंगे इसके हिंसाका पाप नहीं लगेगा ॥२॥ अथवा कोई हिंसा तो बहुत । थोड़ी करे परन्तु उसके क्रोधादिक हिंसादिक परिणाम बहुत तीव्र हों तो उसके हिंसाका फल बहुत ही लगेगा। ॥॥३॥ अथवा किसीके भाव तो हिंसासे निवृत्ति रूप हों, हिंसाके त्याग रूप हों परन्तु उससे हिंसा महुत हो । जाय तो भी उसको उसका फल थोड़ा हो लगेगा ॥४॥ अथवा एक ही प्रकारकी हिंसा किन्हीं दो जीवोंने को परन्तु एकने तो बड़े तीव कषायोंसे को इसलिये उसको फल भी बहत होलगेगा तथा दूसरेने बड़े मंद परिणामोंसे की इसलिये उसको उसका फल बहुत थोड़ा मिलेगा ॥५॥ किसीने हिंसा करनेका विचार किया परन्तु यह शीघ्र हिंसा न कर सका तो उसको हिंसा करनेके पहले ही केवल विचार करनेमात्रसे हिंसाका फल मिल जाता है पोछे कालांतरमें वह उस हिंसाको करता है ॥ ६ ॥ फिसो जीयको हिंसा करके ही उसी समय उसका फल मिल जाता है ॥७॥ किसीको हिंसा करनेपर हिंसाका फल मिलता है।॥ ८॥ किसीको बिना हिंसा किये हो केवल विचार करने मात्रसे हिंसाका फल मिल जाता है ॥ ९॥ हिंसा एक करता है परन्तु उसके फल भोगनेवाले अनेक होते हैं जैसे किसी चोरको एक मनुष्य मारता है परन्तु उसकी अनुमोदना बहुतसे मनुष्य करते हैं वे सब उस हिंसाके फल भोगनेवाले होते हैं ।। १०॥ हिंसा अनेक करते हैं परन्तु फल एकको हो । लगता है। जैसे युद्ध में हजारों लाखों मरते मारते हैं परन्तु फल राजाको ही लगता है ॥११॥ किसीसे शत्रुता। रखकर उसको मारने के लिये पहले उसको विश्वास दिलाना, दया करना, उसका पालन करना सो भी सब हिंसाके फलको हो फलता है।॥ १२ ॥ किसी रोगी जीवको दुखो देखकर अथवा अन्य किसी जोषको दुःखी देखकर अथवा किसी जीवको मरता हुआ देखकर उसके बचाने का प्रयत्न करे चाहे वह प्रयत्न शास्त्र के द्वारा HTTPHONatmensweaawaragHAUTOMATOPHATOPatra i manामानasatta
SR No.090116
Book TitleCharcha Sagar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampalal Pandit
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages597
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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