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उदयन, इनमें प्रमुख थे। ये सम्बन्ध केवल राजनैतिक नहीं थे, वरन् इन राजाओंमहाराजाओं पर महावीर की दार्शनिक चेतना और धर्मोपदेशों का भी पर्याप्त प्रभाव था। सर्वत्र हिंसा का निवारण और जीव दया का आचरण दृष्टिगोचर हो रहा था। लिच्छवियों और मल्लों ने तो अहिंसामय जैन धर्म को 'राजधर्म' के रूप में ही अंगीकार कर लिया था। महामेघवाहन ऐल सम्राट राजा खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख के अनुसार नन्द राजे भी जैन धर्म के पक्षधर हो गये थे।
मगावती वत्स देश की राजधानी कौशाम्बी में राजा शतानीक की पटरानी थीं। कौशाम्बी ‘गन्धर्व नगरी' और 'विलास नगरी' के नाम से भी प्रसिद्ध थी। उज्जैन की राजकुमारी वासवदत्ता को जीतकर लानेवाला और 'मातंग-विमोहिनी' वीणा के स्वरों पर पागल हाथियों को वश में कर लेनेवाला प्रसिद्ध वीणा-वादक राजकुमार उदयन इन्हीं मृगावती का पुत्र था। चन्दना के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएँ इसी कौशाम्बी में घटित हुई थीं।
सुप्रभा दशार्ण देश के तथा प्रभावती सिन्धु-सौवीर देश के राज-परिवारों में ब्याही गयी थीं। चेलना इतिहास प्रसिद्ध मगधसम्राट श्रेणिक बिम्बिसार की पटरानी बनी। छठी पुत्री ज्येष्ठा ने विवाह पूर्व आर्यिका दीक्षा ग्रहण कर ली थी।
महासती चन्दना राजा चेटक की सातवीं और सबसे छोटी पुत्री थीं। पौराणिक कथा के अनुसार चन्दना तीसरे पूर्व भव में सोमिला नाम की ब्राह्मणी थी। दूसरे पूर्वभव में कनकलता और अनन्तर पूर्व पर्याय में पद्मलता नाम की राजपुत्री थी। इस जन्म में वे भगवान महावीर की मौसी थीं। उन्हें तीर्थंकर महावीर के चतुर्विध संघ में आर्यिका दीक्षा प्राप्त हुई। तप के प्रभाव से चन्दना को आर्यिका वर्ग की सर्वोच्च उपाधि 'गणिनी' पद भी प्रदान किया गया था।
एक दिन वैशाली के समीप उद्यान-विहार के समय चन्दना के रूप पर आसक्त होकर वैताड्यगिरि का विद्याधर वसन्तमित्र चन्दना का अपहरण करके अपने विमान में उठा ले गया, परन्तु उस अबला के साथ किसी प्रकार का बल प्रयोग करने के पूर्व अचानक पत्नी मनोवेगा के वहाँ आ पहुँचने से वह चन्दना को अटवी में छोड़ कर भाग गया।
वनांचल में कालक भील ने चन्दना को देखा और अपने अनुकूल बनाने का प्रयत्न किया। जब इसमें सफलता न मिली तब उसने यह अनुपम रमणी-रत्न अपने नायक सिंहभील के सामने उपहार स्वरूप प्रस्तुत किया। कामासक्त सिंहभील भी महासती को डिगा न सका तब उसने चन्दना को कौशाम्बी के
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