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'देख लिया पुत्री ! मैंने छह मास ऐसी विभीषिका की छाया में बिताये तब भी साहस नहीं छोड़ा था। धैर्य और धर्म मेरी रक्षा करते रहे। तुम एक दिन में ही अधीर हो रही हो ? तुम किसी प्रकार मुझसे दुर्बल नहीं हो। तुम भी वैसी ही अनन्त बलवती आत्मा हो। उस चिरन्तन अकम्प ज्योति का स्मरण करो, उसी से तुम्हें प्रकाश मिलेगा, मार्ग सूझेगा। संसार में एक भी प्राणी ऐसा नहीं चन्दना, जो कर्मोदय के सुख-दुख भोगने से बचा हो। जो कर्मफल भोगते समय क्लेशित हो जाते हैं वे भविष्य के लिए अधिक दुष्कर्म बाँध लेते हैं। परन्तु जिन्होंने कर्म के रहस्य को समझ लिया, वे उदय को समता से भोगते हैं। कर्म का भार घटाने का यही उपाय है। साहस रखो और वही उपाय अंगीकार करो। मानव पर्याय कठिनता से मिलती है।। इसे कषायों के आवेग में नष्ट करना उचित नहीं। आत्मघात तो परघात से बड़ा पातक है,
वह पाप कभी मत करना चन्दना !' मैं इस अन्धकार में मार्ग दिखाने के लिए सीता माता के प्रति कृतज्ञता से भर उठी। मुझे लगा कितनी दयालु हैं ये देवी, उस युग में श्रीलक्ष्मण और रावण के जीव को सम्बोधन करने रौरव-भूमि तक गयी थीं, आज मेरे भीतर बोल रही
अब तक मेरी तन्द्रा दूर हो चुकी थी। मुझे स्मरण आया, एक बार हमारे उपवन में आर्यिका संघ का आगमन हुआ था तब महासती सीता का जीवन-वृत्त उन्होंने हमें सुनाया था। माता सुभद्रा भी सीता, अंजना और मैनासुन्दरी की कथाएँ बार बार हमें सुनाती थीं। मैंने हाथ जोड़कर सीता माता को प्रणाम किया और पार्श्व प्रभु को स्मरण करके होनहार का सामना करने के लिए सन्नद्ध होकर बैठ गयी।
32 :: चन्दना