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ही पुरुष की विकारी दृष्टि पड़ने पर नारी की देह में एक चुभन की अनुभूति होने लगती है। उस क्षण मैं उसी अपमानजनक चुभन का संवेदन कर रही थी।
भील अधिक देर चुप नहीं रह सका। उसने बिना किसी भूमिका के अपना कुत्सित प्रस्ताव मेरे सामने रख दिया
"हमारे कुल-देवता ने तुम्हें यहाँ भेजा है। सबसे पहले मेरी दृष्टि तुम पर पड़ी है इसलिए तुम पर मेरा अधिकार है। मुझे स्वामी स्वीकारो और हमारे साथ चलो।"
मेरी असहमति भील को अपने पौरुष के अपमान-सी लगी। वह उग्र होने लगा। उसने बलात् मुझे उठा ले जाने की धमकी भी दे डाली। बीच बीच में भीलनी उसे कुछ समझाती-सी लगती थी पर उनकी बोली मैं नहीं समझ पा रही थी। मात्र उनकी चेष्टाओं से ही कुछ अनुमान हो रहा था। इतना निश्चय मुझे हो गया कि हम वैशाली गणतन्त्र से बहुत दूर किसी अन्य देश में हैं। भीलनी के समझाने का एक परिणाम अवश्य हुआ, भील बड़बड़ाता हुआ चट्टान से उतर कर प्रपात की ओर चला गया।
अब भीलनी सरककर मेरे समीप आ बैठी। उसने मुझसे मेरा परिचय जानना चाहा। मैं किस मुँह से कहती दीदी, कि मैं हतभाग्या वैशाली की राजकन्या हूँ ? यह भी तो मुझे ज्ञात नहीं था कि मैं किसी मित्र देश की सीमा में हूँ या वैशाली से शत्रुता रखनेवाले किसी राज्य की धरती पर बैठी हूँ। सही परिचय का परिणाम क्या होगा यह नहीं जानती थी, पर इतना जानती थी कि उससे मेरे माता-पिता के गौरव को ठेस पहुँचेगी, उनकी अपकीर्ति होगी। उस क्षण बिना विचारे जो भी जिभ्या पर आया वही मिथ्या परिचय मैंने उसे बता दिया।
भीलनी ने मुझे जता दिया कि मैं यहाँ सुरक्षित नहीं हूँ। उसका पति मेरे रूप पर लुब्ध है, मुझे प्राप्त करके ही रहेगा। मैं सहमत नहीं हुई तो वह बलात मुझे उठा ले जाएगा। मुझे उसकी बात मान लेने के सिवा प्राण-रक्षा का कोई उपाय नहीं है।
मैंने भीलनी के सौजन्य का उत्तर सौजन्य सहित किन्तु दृढ़तापूर्वक दिया। अपना संकल्प भी उस पर प्रकट कर दिया कि
“मैं प्राण दे दूँगी पर अपने शील पर आँच नहीं आने दूंगी। यदि मुझ पर बल प्रयोग का प्रयास किया गया तो मैं वहीं और उसी समय अपने जीवन का
26:: चन्दना