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________________ सिरि भूवजय सर्वार्थ सिद्धि सब देखोर-दिस्ती ई सुत पत्रदोळिरुव नोरिनकरण' । प्राशा वारिजवो वर्यि'स्इ घे* ॥ राशिइर पन्ते सारात्मदरुयदोळिर्दु लिसिनिम्'परदरवय दारय।।१५२॥ मोर रणिकेय निरोधिस्वस्(२६)सर्वस'राराजि मस्त इच्छेग' ष ॥ सागर 'ळनिरोधदि निर्वहिसुत' । सेर 'लात्मननु सर्वव निजा'॥१५३॥ उरद 'उत्तम भावनेयनुष्ठा ॥१५४॥ छ र नव निरर्वहिसवुदे ॥१५५॥ पोरयष'म(२७)संयुतयह ॥१५६॥ दर 'उत्तम तपदलि' ॥१५७॥ कर वशर्वति गोळिसुत' ॥१५॥ करुणेय 'मनब असश' ॥१५॥ लारप 'वागिरिसिरपु' ॥१६०॥ सर 'देनिश्चय दसमान ॥१६१॥ सर 'तपदाचार(२८)वरवर ॥१६२।। डेर 'शनचारवाद नाल्कु' ॥१६३॥ कूर 'गळोळु मरसदेशकति' ॥१६४॥ तरि 'योळ भजियपरमात्म' ॥१६॥ तरदे 'परियनाराधिसुत्रु' ॥१६६॥ मरे'दु ताने परिशुद्ध' ॥१६७५ वरवोऱ्याचार (२९) भूरि' ॥१६८।। रर 'वयुभवयुतवागि' ॥१६६॥ ळ 'रुवी अयदु चारित्रा' ॥१७०॥ कर 'राधनेगळनु सार ॥१७१३ टर 'पशचाचार वेनुव ॥१७२।। दोरेव सिद्घान्द भूरि ॥१७३॥ रर 'वयभवद भूवलयद ॥१७॥ वदवे 'तेरिन कलश ॥१७॥ दर 'विद्दनते तम्मात्म ॥११॥ र 'नसार रत्नत्रयात्म ॥१७७॥ एर 'कद कारण समय ॥१७८॥ नर 'सारव बलदिनद ॥१७६।। पर 'लिसेरिसबुद् निश्च ॥१८॥ रियार(३१) षुट्टु भदसिव' ॥११॥ इरुवुदे 'सोक्खमनालय' ॥१२॥ उ* सिहटिप निश्चयवदनु हुदृढिसे । वश कार्यन्नु समय, भुवि ॥ रस दसार हटि बहदु समाधियया(३२)या,धर्म साम्राज्यदरी।।१८३॥ जा यावीतरागद निर्मलात्मन समा, पयोधियोळ कर्म सम्हः व* ॥ नय 'प्राख माडुते निदिर्य शर्म परु' । स्वयम् सर्वसाधुगति' 'पात।।१४।। जल य के सम्सारदाशेयु बिद्धभव्यपू । त'यवर पूण्य पादग' ना ॥ सय' ' र 'नोतिमार्गदनिर्भरभक्ति' । यिमनोन मातु मनसु का ॥१८॥ नी वियवत्य(३४)नमिसु स्मरिसु कोन्डाडुस्तोत्रव'दोळ एम्ब' न ते क्रमानव भूवलय पेळ वुदु श्रमविल्लदे' सवि सिद्धान्त मार्यवहोन्। १८६। तुझ न दे निमगे तप्पदु मुकतिपन ज[३५]तीर्थम् क'नन 'ररन्ते' ताक्ष मदन्ला । मनिहनु स्वार्थबागलु शुद्धज्यानवे । ने व्यर्यदज्ञानवकेडिसे। १८७। एक रि रत्नत्रय तीर्थ ननय अन्त सा रनगत[३६]तिळिपादन म त ॥ सार चतुष्टय रूपनु वलित पम् । नारा 'चम' भावयुतनु' ॥१६॥ एर 'कलि सप्त भय विप' ॥१६॥ ग 'मुक्त स वरपनु चलुव ॥१०॥ ळरव 'अखम्डस्वरूपदे [३७] ॥१६॥ योर नित्यनिजानन्दयक' ॥१२॥ गरुव 'चिद्रूपम सत्य' ॥१९३॥ दोरेव परात्पर सुखद' ॥१४॥ मळि 'स ततुत्यरु सर्व साधु' ॥१६॥ सरुव 'गलेन्दरियुत प्र ॥१६॥ विरल 'तबन्त भक्ति नमि' ॥१९॥ दर पे हम्(३८)रुषिगळन वर' ॥१८॥ खुरवर 'पदप्रापतियाग' १६ कर 'विर लेन्दसमान' ॥२०॥ लरयव 'भक्तियिम् भजसे ॥२०१शा परडु 'पशबहुवेलुलरगे ॥२०२॥ हरु 'सविकल्परूपद सु' ॥२०३।। वरद 'समाधि य सिद्धि' ॥२०४॥ धरि 'साधनस (३९)करुणेय' ॥२०॥ धनरसे 'गुरुगळय्वर' २०६।। हर व भक्तियिम् बरुवकष' ॥२०७॥ गरि 'रानक काययक्नु विर' ॥२०॥ नचिसि 'पराकतसमसवुर' ॥२०॥ सर त कनड वोळ वेरसि' ॥२१०॥ मरे 'पद्धत्तिगर्नयबया(४०) ॥२१॥ करपात्रवनन भूवलय ॥२१२॥
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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