SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरि भूवलय सर्वार्थ सिद्धि संघ बैंगलोर-दिल्ली इ% वु 'वशवल्लद मन कोणनन्तिा । ग'यनुवशगोळिसिद' ब * दुक।। सवणनु जिनमुद्रो।होसभूवलयदि'न्द । सवि लांछनबागलु'श्री ।।११।। * श्शन वशवायतेम्मय सोम्मु (१२)लुएन्दु ।बरे दिवदिन्दवत् अ* रिसु।। बर'जिननाथनु, अवितु हन्दियवेषा परिसि अवनिगे काव्यगळ ॥११७। धक 'रभवनित्त सूकर'नव वाहन' सभव पोरेगेम्मम् [१३]य अ तक न ॥गर्भद 'गगनेयिल्लद द्रव्य शृतदक्ष' । गर्भ रांकद मणिगळं'नु ॥११॥ व* शव'रोमरोमदलि हेगोदु कोन्डिर् 'सम श्री करडिय अ' प्रा* तम।। यशवकु'लांछनक्षपदअमहिमेयमायश तोर्क[११]यक्षदेवरुगळ्॥११॥ र सब 'प्रायुध बच जिन धर्म' दक्षुण्ण' दिशेयलि 'सेवेगागि' भू उवि। गिसि हुदु' शिक्ष योदरक्षणयिस्व'। वश लांछन वन'यशदे ॥१२०॥ 'प्राशेयादिय एरडरलि' ॥१२१॥ माशे 'अनपणीय वरुम्' ॥१२२॥ इसेव पूर्वेय हदिनाल्कम् ॥१२॥ हसनदरलि 'पूर्वान्त' ॥१२४॥ असमान 'अपरांतध्रुबरुम् ॥१२॥ म सक्ए' प्ररुव चवनलबषि'॥१२६॥ असदुश 'अद्रुव सम्प्ररणधि॥१२७॥ दुइशे 'अर्थ भौमावमाद्य ॥१२८॥ एसेये 'सर्वार्थ कल्पनिया' ॥१२६॥ एशे 'अतीत ज्ञानवरर' ॥१३०॥ प्सरिसिद् 'अनागत सिद्ध ॥१३१॥ 'उसह सिद्धम् उपाध्याय' ॥१३२॥ लुसरिसि 'इनितेल्लयुगळम् ॥१३३॥ प्रोसेयिसिदरु 'सेनगरगरु' ।।१३४॥ 'दशधर्मद् अचार ग्रन्थ' ॥१३५।। प्रसिहर 'जिन समाहितर' ॥१३६॥ यशद 'भुवलय धवलरु' ॥१३७॥ अस् 'महाधवळ प्ररूपर् ॥१३॥ लसदृश 'जय धवलवरु' ॥१३६॥ असम विजय धवलवरु' ॥१४०॥ वशद 'सिद्धांत पञ्चधर ॥१४१॥ 'उसह सेनर वमश घयलर' ॥१४२। भ्सव पूजितर भूवलय ॥१४३॥ कर वचद 'रक्षणे ईउदु सहसा'(१५)कवि'तुष मष बोधदिन्द'। नव अ 'असि आ उ सावनु वशगोळिसिद'।प्रवर वेगवनु'यशदोळ ॥१४४॥ ऊ रुत'तोरुव हरिण लांछन वत्' । 'सारि हेसरिसे बह पुण्य 'अ' वा 'सार सफल(१६)रसयुतवा गिरुवु देल्लादारियलि ह'सोप्पुगळनु'।१४५।। * ळिसुत्त 'तिन्दु हसनल्लदाडुमुव । 'यश यनु' बिसुड्उ अटगरम्हसदन'तेपापहरणमाळप होसटगर्'एसेयलु'हदिनेळरंक' (१७)॥१४६॥ ए, रिसि 'गगनवेल्लब सुत्ति बगेयोळ' । गारा' गडगिद् अगणित' न* 'सारद 'शब्दराशियदुम सोगसाद' । नेरद 'गमल भूवलय' ॥१४७।। हो* दिव्य 'नन्यावर्त हगलिनन्ति'। रोदिनधि 'रलेन अन् तु वेदित 'हृदय' (१८)दे धारणाशियोळेळ'। साधने बल बास्देव' ॥१४॥ उदित 'पारगद राद्धांतर्' ॥१४६।। धवश 'सकल शास्त्रगळम् ॥१५०॥ नवद 'सम्पन्नरम सकल ॥१५॥ वेदो 'विमल केवल गारणा ॥१५२॥ अदरअ 'धीश्वर रुम श्री ॥१५३॥ एघर 'त्रिलोक स्वामि दया' ॥१५४॥ अबु 'मूल धर्मदोळ' दित ॥१५५॥ रदरु पविष्ट त्रिलोक' ॥१५६॥ आदर 'सार लग्धि' गर्छ ॥१५७॥ कदिर 'सार चारित्र सार' ॥१५॥ एदुह चतुष्टयनाळोळ ॥१५६॥ ग्दरोळ 'गाद रावक र ॥१६॥ इवर 'आचार मोवलाद' ॥१६॥ दरे 'सन्धानि लोकानि' ॥१६॥ स्दवधि 'सूर्य प्रज्ञप्ति' ११६३।। इदु 'युक्ति युक्ति प्रागमरु' ॥१६४॥ द 'परमागमवाद' ॥१६॥ प्रदरलि 'तीर्थकरान्त' ॥१६६॥ र्व 'सन्तति मूल प्रकृति' ॥१६७॥ तदिगे 'उत्तरोत्तर प्रकृति' ॥१६॥ नद 'वरनतप्प सज्जनरु' ॥१६॥ अदुवे 'मय भारत सम्ज एन'॥१७०॥ सदृश 'अन्य भूबलयर' ॥१७१॥ पर रद 'सारात्म' तु 'नवमांक चक्रि'यु । बरे 'सार मंगल पूऊ' भू प्रायरवर्ण कुम्भवाहनननु नेरदि। परिदु'तुतिसे वाहन मा[१९]॥१७२।। एक रिणव पदवेल्लगे भद्रकवच'। वर 'वन्तु सदेयद चिर बरेद क 'प्पहमेय्य' सुविशालबाना । मेरेव 'य लांछन'कवि' ॥१७॥
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy