SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सिरि भूवलव सर्वार्थ सिद्धि संप बैंगलोर-दिल्ली एक प्रदेश में काल, जीव और पुदगल द्रब्य जब आकर मिल जाते हैं। नर, सुर तिर्यञ्च तथा नारकी जीवों को विविष भांति से सम्यक्त्व तब अनन्ताङ्क मिल जाते हैं। उन नीचातिनीच योनि में जीनेवाले जीवों को प्राप्त होता है। और उस सम्यक्त्व के प्रभाव से गोचरी वृत्ति द्वारा माहार बाहर जाकर भव्य जीवों को मंगल पाहुड काव्य के अन्दर लाकर, स्थित ग्रहण करने वाले दिगम्बर मुनियों को चारित्र लब्धि प्राप्त होने का कारण हो करके ।१२५॥ । जाता है, ऐसा थी जिनेन्द्र देव द्वारा प्रतिपादित वचन है ।१४। लोक में भद्र पूर्वक रक्षा करके गुरण स्थान मार्ग से बद्ध करके पांचों यह वाक्य श्री ऋषभ तीर्थकरादि २४ तीर्थकरों के धर्म तीर्थ में प्रवाहित कल्याणों की महिमा दिलाकर ऊपर चढ़ाते हुये लोकान अर्थात् सिद्ध लोक में होता हुघा पाया तत्व है और यह तत्व जिन भव्य जीवों के वश में हो जाता है स्थिर करते हुये शोकापहरण करने वाला यह अंक है ।१२६। उनके संसार का शीघ्र ही अन्त हो जाता है 1१४५॥ नाकाग्र अर्थात् लोक के अग्रभाग का सिद्ध रूपी काव्य है ।१२७। द्वीप, सागर, गिरि, गुफा तथा जल गिरने के झरने प्रादि स्थानों में समस्त व्याकुलता को नाश करनेवाला यह काव्य है ।१०८। जो निर्वाण भुमि है, वह मोक्ष गृह की नींव है, उस नींव को बतलाने वाला यह पाकार रहित दिव्यांक काव्य है ।१२।। यह परम मंगल भूवलय काव्य है ।१४६॥ यह एकाग्र ध्यान को प्राप्त कर देने वाला काव्य है ।१३०। वीर वाणी मोंकार स्वरूप है । उस ओंकार से प्राया हुआ यह भूवलय यह प्रोकार वजित शब्द है ।१३१॥ काव्य है ।१४७ यह ओंकार गोचर वस्तु है ।१३२। दिगम्बर योगिराजों ने उपर्युक्त तपोभूमियों में ही काम राज का संहार यह ह्रींकार के द्वारा पाराध्य वस्तु है ।१३३॥ किया है ।१४। यह ह्रोंकार के द्वारा पूजित गर्भ है ।१३४। उपर्यु त तपोभूमियों तथा दिगम्बर महामुनियों के कथन करने का धर्म यह हलुकार के द्वारा आराध्य संशा है ।१३५। ही विश्व काव्यांग रचना का धर्म है ।१४६। उस काव्य रचना की विद्या ६४ अक्षरों को घुमाना ही है ।१५०। हुँकार गोचर वस्तु है ।१३६। इस क्रिया के द्वारा कर्मों की निर्जरा भी होती है ।१५१॥ ह्रोंकार पूजित गर्भ है ।१३७। यह ह्रोंकार अतिशय वस्तु है ।१३८१ यह थी विद्या पुण्यबन्ध की इच्छा करनेवालों को पुण्यबन्ध करा सकती है।१५२। यह हकार आराध्य सर्वज्ञ है ।१३६ इस परम पावनी विद्या के साधकों को अखिल विश्व भंगलमय दृष्टियह हःकार गोचर वस्तु है । १४०) गोचर होता है ।१५३॥ इस प्रकार मंत्राक्षरांक युक्त होने से यह भूवलय का रहित है ।१४१॥ यह मंगलमय ६४ अंक विश्व का वैभव है ।१५४। नवकार मंत्र के प्रादि में अरहन्त शिवपद कैलाश गिरि है, उनका जिस प्रकार एक छोटे से चोज का अंकुर कालान्तर में महान वृक्ष बन निवास स्थान अतिशय श्री समवशरण भूमि है तथा जन्म और मरण का नाशक जाता है उसी प्रकार यह पुण्यांकुर वृद्धिंगत होकर बहुत बड़ा वृक्ष बन जाता संहार भूमि है ।१४२॥ है ॥१५॥ यह श्रेष्ठ भद्रकारण होने से मंगल मय है, गुरु परम्परागत अङ्ग ज्ञान यह मंगलमय क्षेत्र श्री जिनेन्द्रदेव भगवान का है ।१५६ है, परमात्म सिद्धि के गमन में कारण भूत होने से यह भूवलय श्री वर्धमान इस क्षेत्र का ज्ञान अर्थात् विश्व दर्शन से समस्त ज्ञान प्राप्त हो जाता भयवान का वाक्यालू है।१४।। है।१५७।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy