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दसवां अध्याय
ऋ* दूधि सिद्धिगळनु होन्दसि कोडुवंक । सिद्धिय सर्वज्ञ न* वन शुद्ध केवलज्ञानदतिशय धवलदे । सिद्धवागिरुव भूवलय || १ || सि* रि वीरसेन भट्टारकरूपदेश । गुरु वर्धमान श्री मुखवे । त रतर वागि बन्दरुयुदनेल्लव । विरचिसि कुमुदेन्दु गुरु ॥२॥ श्रो* दिसिवेनु कर्माटव जनरिगे। श्री दिव्य वाशिय क्रमवे। श्री द या धर्म समन्वय गणितद । मोवद कथेयनालिपुवु ॥३॥ नादिय कथेयनालिदु ||५|| वेद हन्एरडनालिपु ॥६॥ इ दिनवादिय काव्य ॥७॥ वेदागम पूर्व सूत्र ॥६॥ वेदव हृदिनाकु पूर्व || १०|| श्री दिव्य करण सूत्रांक ॥। ११॥ साधिक वय्भव बंध ॥ १३॥ प्रनिध्यात्मव बन्ध ॥ १४ ॥ श्री धन घी धन रिद्धि ।। १५ ।। नोव्थ सिद्धि ||१६|| प्रदिनो वृषघ रिद्धि ॥ १७॥ कादियिम् वर्णमालान्क || १८ || कादिधिम् नवमात्क बंघ ॥ १६॥ for नवमाकवंग || २० || पादियिम् नवमान्क भंग ॥ २१॥ याद्यष्टरळ कुल भंग ||२२|| सायन्त अं अः कः पः द ॥२३॥ मोइत्ते स्वरद ||२४|| श्रोदिन अरवत्नात्क अन्क ||२५|| साधित सिद्ध भूवलय ॥२६॥ सु* रनर नागेन्द्र तिरियन्च नारक । ररियुवेऴ्तूर् एम्ब शुॐ ॥
प्रादिय कथेय नालिषु ॥ ४ ॥ ॥ सादि श्रनन्तद ग्रन्थ ॥८॥ श्रादिगनादि वस्तु || १२ ||
वरभाषें हविनेन्ट बेरसिनाम् बरेदिहे । गुरु बोर सेन सम्मतदिम् ॥२७॥
॥३०॥
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* मनिसि प्रखत्नात् अक्षर सम्योग । विमल भंगांक रा रुधि ।। क्रमविह अपुनरुक्तान्कद प्रक्षर । विमल गुणाकार मग्गि॥ २८ ॥ गि* fse तुम्बिoad लोमांक पद्धति । पोडवियोळतिशुद्भव ए* रग ।। गडियोळगवनुम् प्रतिलोमदन्कबिम् । बिडिसलु बहुवेल्ल भाषे ॥२६॥ र भाषेगळेल्ल समयोग बागलु। सरस शब्दागम छुट्टि । सर व दुमालेयादतिशय हारव । सरस्वति कोरळ आभरण परि परि यद कुसुम ||३१|| अरहन्त वारिणय महिमा ||३२|| सरळवागिह कर्नाटकद ||३३|| गुरु परम्परेय सूत्रान्क ||३५|| परमात्म नोरेद रहस्य ||३६|| वर कुसुमाक्षर दनक ॥३७॥ गरुडगमन रिद्धि गमन ॥३६॥ शरीर सन्दर्पद प्रक्ष ||४०|| विरचित कुमुदेन्दु काव्य ||४१॥ गुरुगळ वाक्य भूयलय ॥४३॥
परम व विध्यांक पूर्ण ॥ ३४ ॥ सरळवादरु प्रउड विषय ॥ ३८ ॥ धरवत् नात्क क्षरदन्
।। ४२ ।।
ह* रुष वर्धनवा जीव राशिय काव्य । सरुवान्क सरुवाक्षर न श्रम् । वरेयदे वरुव रेखांक समृद्धिय । परमारुतव रचनेयिम् ||४४||
गुरु गुपाद टुन्डाद लिपिय कर्नाटक । दनुपम र ळ कुळवेरसि ।। मोक्ष मार्गोपदेशकबाद एलोम्वेन्द्र । साक्षर अक्षरद् रक्षोगादिय वस्तु ॥४७॥ अक्षयानन्त सुवस्तु ॥ ४८ ॥ शिक्षण प्ररवत् नात्क अंग || ५१|| सूक्ष्मांकदनुपम भंग ॥ ५२ ॥ लक्ष कोटिगळ इलोकांक ||५५|| nare fuge गरिणत || ५६॥ लक्षरण पाहुडद ॥५६॥ बोक्षावसन त्याग ॥६०॥ अक्षर बन्बव मनेगऴ् ॥ ६३ ॥ चक्षुवन् मोलनवन्क ॥ ६४॥ कुषस्यस हार पदक ॥६७॥ यक्ष प्रकर्ष भूवलय ॥६८॥
* श्रनुजर देवर जीवराशिय शब्द । धनुपम प्राक्रुत दूरविड || ४५ || * हिन ॥ रक्षेय जगव समस्त भाषेगळिह शिक्षेये भव्यर वस्तु ||४६ ॥ अक्षर एरडने भन ॥ ४६ ॥ श्राक्षर वादि त्रिभंग ॥५०॥ अक्षय सुखद सुरूप ॥५३॥ शिक्षेयनादिय वस्तु ॥ ५४ ॥ कुक्षियो हुगिविरुवक ||५७|| कक्ष खगोळ मंगलव ॥ ५८ ॥ तीक्षण वाग्वारगवे मृदुल ॥ ६१ कक्षपुटवे चक्र भंष ॥६२॥ चक्षु प्रचक्षु सज्ञान ||६५|| मक्ष सकाकारण बर ।।६६॥
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