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________________ सिरि भवलय सर्वार्थ सिद्धि संघ बंगलौर-दिल्ली समांक को विषमांक से भाग देने से शून्य आ जाता है।८७) इस गजेन्द्रनिष्क्रीड़ित महातप को करने वाले महात्माओं के महाव्रतों नाट्य शास्त्र के अभिनय के लक्षण में इस सिंह का भाव प्रकट करें तो में अपूर्व शुद्धि भी प्राप्त हो जाती है ।१५॥ अहिंसा का भाव पैदा होता है । ऐसा कहने वाला यह निर्मलांक महाकाव्य भूवलय है । पाहुट ग्रन्थों में इस सिंह प्रातिहार्य को श्रमहारक लांछन माना गया मध्य सिहनिष्क्रीडित एक से पाठ मंक तक का प्रस्तार बनाना चाहिये। उसके शिखर पर अन्त में (मध्य में) नौ का मंक मा जाना चाहिये और जघन्य चारों ओर रहने वाले सिंह के मुख समान होते हैं । निष्क्रीडित के समान यहां भी दो दो अक्षर की अपेक्षा से एक एक उपवास का सिंह के समीप महावनियों के बैठने के कारण इस सिंह का भी महाव्रती अंक घटाना बढ़ाना चाहिये । इस रीति से इस मध्य सिंहनिष्क्रीडित में जितनी सिंह नाम पाया है ।। अंकों की संख्या हो उतने तो उपवास समझने चाहिये और जितने स्थान हों समवशरण में सिंहासन के पास महाव्रती बैठकर जो सिह निष्कोडित, उतनी पारणा जाननी चाहिये अर्थात् तप करते हैं उसी के कारण इस को सिंह निष्क्रीड़ित कहते हैं । इसका नाम गज अग्रकीड़े अथवा गजेन्द्र-निष्क्रीड़त तप भी है १६३। । १२१३२४३५४६५७६८७८९ इस सिंह प्रातिहार्य को यदि नमस्कार करें तो अणुव्रत की सिद्धि हो । जाती है । ८७-६७५६४५३४२३१२१ सिंहनिष्क्रीडित व्रत जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट भेद से तीन प्रकार का है। उनमें जघन्य सिहनिष्कोडित इस प्रकार है। एक ऐसा प्रस्तार बनाके कि अन्त में (मध्य में) उसमें पांच का अंक आ जाय और पहिले के अंकों में दो दो अंकों की सहायता से एक एक अंक बढ़ता जाय और घटता जाय इस रीति से जितने इस जघन्य सिहनिष्क्रीडित में अंकों के जोड़ने पर संख्या सिद्ध हो उतने तो उपवास समझना चाहिये और जितने स्थान हों उतनी पारणा जाननी चाहिए अर्थात् इस प्रस्तार का १२१३२४३५४५५४५३४२३१२१ यह आकार है। यहां पर पहिले एक उपवास एक पारणा और दो उपवास एक. पारणा करनी चाहिये । पश्चात् दो में से एक उपवास का अंक घट जाने से एक उपवास एक पारणा, दो में एक उपवास का अंक बढ़ जाने से तीन उपवास एक पारणा, तीन में से एक उपवास का अंक घट जाने से दो उपचास एक पारण, तीन में एक उपदास का अंक बढ़ जाने से चार उपवास एक पारणा, चार में से एक उपवास का अङ्क घट जाने से तीन उपवास एक पारणा, चार में एक उपवास का अङ्क बढ़ जाने से पांच उपवास एक पारणा, पांच में से एक उपवास का अंक घटा देने पर चार उपवास एक पारणा, चार में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर पांच उपवास एक पारणा होती है। यहां पर अन्त में पांच का अंक मा जाने से पूर्वाद्ध समाप्त हुआ। आगे उल्टी संख्या से पहिले पांच उपवास एक पारणा करनी चाहिए । पश्चात् पांच में से एक उपवास का भंक घटा देने पर चार उपवास एक पारणा, चार में एक उपवास का अंक बढ़ा देने पर पांच उपवास एक पारणा, चार में से एक उपवास का अंक घटा देने पर तीन उपवास एक पारणा, तीन में से एक उपवास का अंक घटा वेने पर दो उपवास एक पारणा, दो में से एक उपवास का अंक बढ़ा देने से तीन उप-.. वास एक पारणा, दो में से एक उपवास का अंक घटा देने पर एक उपवास एक पारणा, पश्चात् दो उपवास एक पारणा, एक उपवास एक पारणा करनी चाहिये । इस जघन्य सिंहनिष्क्रीडित में अंकों की संख्या साठ है। इसलिए साठ उपवास होते हैं और स्थान बीस हैं, इसलिये पारणा बोस होती है। यह दिदि अस्सी ८० दिन में जाकर समाप्त होती है।
SR No.090109
Book TitleSiri Bhuvalay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhuvalay Prakashan Samiti Delhi
PublisherBhuvalay Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages258
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Principle
File Size10 MB
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