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करुणाष्टक करुणा ल्यो जिनराज हमारी, करुणा ल्यो॥टेक ।। अहो जगतगुरु जगपती, परमानंदनिधान। किं कर पर कीजे दया, दीजे अविचल थान ।।१॥ हमारी.॥ भवदुखसों भयभीत हौं, शिवपदवांछा सार। करो दया मुझ दीनपै, भवबंधन निरवार ॥२॥ हमारी.॥ पर्यो विषम भवकूपमें, हे प्रभु! काढ़ो मोहि । पतितउधारण हो तुम्हीं, फिर-फिर विनऊ तोहि ।। ३ ।। हमारी ।। तुम प्रभु परमदयाल हो, अशरण के आधार। मोहि दुष्ट दुख देत हैं, तुमसों करहुं पुकार॥४॥हमारी.॥ दुःखित देखि दया करै, गाँवपती इक होय। तुम त्रिभुवनपति कर्मलें, क्यों न छुड़ावो मोय ।। ५॥हमारी ।। भव-आताप तबै भुजै, जब राखो उर धोय। दया-सुधा करि सीयरा, तुम पदपंकज दोय॥६॥ हमारी ।। येहि एक मुझ वीनती, स्वामी! हर संसार । बहुत धन्यो हूँ त्रासतै, विलख्यो बारंबार ॥७॥ हमारी.॥ पदमनंदिको अर्थ लैं, अरज करी हितकाज। शरणागत 'भूधर'-तणी, राखौ जगपति लाज॥८॥ हमारी.।
हे प्रभु! हमारी ओर करुणा लीजिए अर्थात् हम पर करुणा कीजिए । मेरी आकुलता का निवारण हो, आप जगत्पति हैं, जगत के परम गुरु हैं, परम आनंद के आधार हैं । मुझ दास पर कृपाकर मुझे मोक्ष में स्थिति दीजिए। संसार के
भूधर भजन सौरभ