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________________ राग सोरठ स्वामीजी सांची सरन तुम्हारी ।। टेक ।। समरथ शांत सकल गुनपूरे, भयो भरोसो भारी॥स्वामी.॥ जनम-जरा जग बैरी जीते, टेव मरनकी टारी। हमहूकों अजरामर करियो, भरियो आस हमारी॥१।। स्वामी. ।। जनमैं मरै धरै तन फिरि-फिरि, सो साहिब संसारी। 'भूधर' पर दालिद क्यों दलि है, जो है आप भिखारी॥२॥स्वामी.॥ हे प्रभु, हे स्वामी : हारी की शरण सत्य है। समर्थ हैं, शांत हैं, सर्वगुणसंपन्ना हैं, हमें आप पर पूर्ण भरोसा है। आपका ही आधार है। आपने जन्म और बुढ़ापा जो सारे जगत के बैरी हैं, उनको जीत लिया है और मृत्यु की परम्परा को भी हमेशा के लिए छोड़ दिया है, अर्थात् मृत्यु से भी मुक्त हो गए हैं। हमें भी आपकी भांति अजर (जो कभी रोग-ग्रस्त न हो, वृद्ध न हो)-अमर (जिसका कभी मरण न हो) स्थिति दो, अजर-अमर स्थान दो, आपसे हमारी यही एक आशा है, इसे पूर्ण कीजिए। __ भूधरदासजी कहते हैं कि जो संसार में जन्म-मरण धारणकर बार-बार आवागमन करते हैं ऐसे देव संसारी हैं। वे स्वयं याचक हैं, पराधीन हैं, वे मेरी (भूधरदास की) दरिद्रता का नाश कैसे करेंगे! दलि = नाश करना। भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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