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राग ख्याल बरवा म्हें तो थाकी आज महिमा जानी, अब लों नहिं उर आनी॥टेक॥ काहे को भर बामें अमो, क्यों होतो दुखदानी॥९॥ न्हें तो.॥ नाम-प्रताप तिरे अंजनसे, कीचकसे अभिमानी॥२॥ म्हें तो.॥ ऐसी साख बहुत सुनियत है, जैनपुराण बखानी॥३॥ में तो.।। 'भूधर' को सेवा वर दीजै, मैं जाचक तुम दानी॥४॥ म्हें तो.॥
हे भगवन ! हमने आज आपकी महिमा (विशेषता, विरुदावली) जानी, अब तक ये बात (महिमा) हमारे हृदय में नहीं आई थी। यदि आपकी महिमा/ विशेषता/गणों को पहले जान लेते तो हम क्यों अब तक भव- भ्रमण करते? क्यों संसार में रुलते और क्यों दु:खी होते? आपके नाम-स्मरण से अंजन चोर व कीचक जैसे अभिमानी भी तिर गए। आपकी ऐसी साख जैन पुराणों में बहुत वर्णित है, बहुत कही गई है, वह हमने भी बहुत सुनी है। भूधरदास कहते हैं कि मैं याचक हूँ और आप हैं दानी अतः मुझको आपकी सेवा करने का वर अवसर दीजिए।
भूधर भजन सौरभ