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(२५) तुम तरनतारन भवनिवारन, भविक-मनआनन्दनो। श्रीनाभिनन्दन जगतवन्दन, आदिनाथ · जिनिन्दनो । तुम आदिनाथ अनादि सेऊं, सेय पद पूजा करों। कैलाशगिरिपर ऋषभ जिनवर, चरणकमल हृदय धरों॥१॥ तुम अजितनाथ अजीत जीते, अष्टकर्म महाबली। यह जानकर तुम शरण आयो, कृपा कीजे नाथ जी। तुम चन्द्रवदन सुचन्द्रलक्षण, चन्द्रपुरिपरमेशजू। महासेननन्दन जमतवंदन, बन्नाथ जिनेसासू॥२॥ तुम बालबोधविवेकसागर, भव्यकमलप्रकाशनो। श्रीनेमिनाथ पवित्र दिनकर, पापतिमिर विनाशनो । तुम तजी राजुल राजकन्या, कामसेन्या वश करी। चारित्ररथ चढ़ि भये दूलह, जाय शिवसुन्दरि वरी॥३॥ इन्द्रादि जन्मस्थान जिनके, करन कनकाचल चढ़े । गंधर्व देवन सुयश गाये, अपसरा मंगल पढ़े॥ इहि विधि सुरासर निज नियोगी, सकल सेवाविधि ठही। ते पार्श्व प्रभु मो आस पूरो, चरनसेवक हों सही॥४॥ तुम ज्ञान रवि अज्ञानतमहर, सेवकन सुख देत हो। मम कुमतिहारन सुमतिकारन, दुरित सब हर लेत हो । तुम मोक्षदाता कर्मघाता, दीन जानि दया करो। सिद्धार्थनन्दन जगतवन्दन, महावीर जिनेश्वरो॥५॥ चौबीस तीर्थकर सुजिनको, नमत सुरनर आयके। मैं शरण आयो हर्ष पायो, जोर कर सिर नायके ।। तुम तरनतारन हो प्रभूजी, मोहि पार उतारियो। मैं हीन दीन दयालु प्रभुजी, काज मेरो सारियो ॥६॥ भूधर भजन सौरभ