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________________ ये बजत विजय निशान दुंदुभि, जीत सूचै प्रभु तनी। सो जयो पार्श्व जिनेन्द्र पातकहरन जग चूड़ामनी ॥६॥ छास्थ पद मैं प्रथम दर्शन, ज्ञान चरित आदरे । अब तीन तेई छत्र छलसौं, करत छाया छवि भरे । अति धवल रूप अनूप उन्नत, सोमबिंब प्रभा-हनी। सो जयो पार्श्व जिनेन्द्र पातकहरन जग चूड़ामनी ।।७।। दुति देखि जाकी चन्द सरमै, तेजसों रवि लाजई। तव प्रभा-मण्डल जोग जग मै, कौन उपमा छाजई। इत्यादि अतुल विभूति मण्डित, सोहिये त्रिभुवन धनी। सो जयो पार्श्व जिनेन्द्र पातकहरन जग चूड़ामनी ॥८॥ या अगम महिमा सिंधु साहब, शक्र पार न पावहीं। तजि हासमय तुम दास 'भूधर' भगतिवश यश गावहीं। अब होउ भव-भव स्वामि मेरे, मैं सदा सेवक रहौ । कर जोरि यह वरदान मांगौं, मोखपद जावत लहौं । सो जयो पार्श्व जिनेन्द्र पातकहरन जग चूड़ामनी॥९॥ ___ मैं पार्श्व प्रभु को नमन करता हूँ, जो इस जगत में अमृत रस के सार हैं। यह ही जन्म-जरारहित, अमरपद अर्थात् मोक्षपद प्राप्ति का मूल साधन है, इसलिए मैं उनको बलि जाता हूँ अर्थात् उनके प्रति समर्पित हूँ। ___ अशोक - ऊँचा अशोक वृक्ष, पवन के झकोरों के कारण झूमता हुआ सुशोभित हो रहा है मानो प्रभु का सामीप्य पाकर वह प्रमुदित हो रहा है। उसके फूलों के गच्छों पर भ्रमर झूम रहे हैं और गुंजन कर रहे हैं, उनका गुंजन मानो कह रहा है कि ऐसे पापनाशक जगतश्रेष्ठ श्री पावं जिनेन्द्र की जय हो, वे सदा जयवंत रहें। पुष्प - कामदेव अपनी मृत्यु के भय से सारे जगत में शरण के लिए भागता फिरा, परन्तु वह प्रभु की दृष्टि में चोर था इसलिए उसे कहीं शरण नहीं मिली और अन्त में वह अपनी हार स्वीकार कर प्रभु के, आपके चरणों में आ गिरा भूधर भजन सौरभ २९
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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