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________________ (२३) राग सारङ्ग जपि माला जिनवर नामकी। भजन सुधारससों नहिं धोई, सो रसना किम कामकी॥ जपि.॥ सुमरन सार और सब मिथ्या, पटतर धुंवा नाम की। विषम कमान समान विषय सुख, काय कोथली चामकी॥१॥ जपि.॥ जैसे चित्र-नाग के माथै, थिर मूरति चित्रामकी। चित आरूढ़ करो प्रभु ऐसे, खोय गुंडी परिनामकी॥२॥ जपि.॥ कर्म बैरि अहनिशि छल जोवै, सुधि न परत पल जामकी। 'भूधर' कैसैं बनत विसारै, रटना पूरन रामकी॥३॥जपि. ।। (हे भव्य!) श्री जिनवर की माला जपो । जिनेन्द्र की भक्ति स्तवन से जिसने अपनी रसना (जीभ-जिह्वा) को नहीं धोया वह रसना (जीभ) अन्य किस मतलब की है? जिनेन्द्र का स्मरण ही सारयुक्त है, उनकी तुलना में और सब झूठ है, नाममात्र का है, थोथा है । यह देह चमड़े की थैली है और विषयों के सुखाभास कठोर बाण के समान पीड़ादायक हैं, कष्टदायक हैं। भित्तिचित्र में चित्रित नाग के सिर पर विराजित भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति प्रशान्त और स्थिर है, उस स्थिर मुद्रा को फल की इच्छा/चिन्तारहित होकर अपने चित्त में आरूढ़ करो और अपना चित्त भी उनके समान स्थिर करो। ये कर्म-शत्रु दिन-रात इतना छल रहे हैं कि एक क्षण भी उनका (भगवान पार्श्वनाथ का) स्मरण नहीं होता। भूधरदास कहते हैं कि उसके स्मरण के बिना तेरा प्रयोजन कैसे सिद्ध होगा अर्थात् उनके जप-स्मरण से ही तेरी सिद्धि होगी। पटतर - तुलना में, मुकाबले में। भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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