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________________ आरती आरती आदि जिनिंद तुम्हारी, नाभिकुमार कनक-छविधारी।। जुगकी आदि प्रजा प्रतिपाली, सकल जनन की आरति टाली॥१॥ बांछापूरन सबके स्वामी, प्रगट भये प्रभु अंतरजामी॥२॥ कोटिभानुजुत आभा तनकी, चाहत चाह मिटे नहिं तनकी ॥३॥ नाटक निरखि परम पद ध्यायो, राग थान वैराग उपायो॥४॥ आदि जगतगुरु आदि विधाता, सुरग मुकति-मारगके दाता॥५॥ दीनदयाल दया अब कीजे, 'भूधर' सेवकको ढिग लीजे॥६॥ हे आदि जिनेश्वर ! हे सुवर्णवर्णी नाभिकुमार! आपकी आरती हो । युग के प्रारम्भ में आपने प्रजा का प्रतिपालन किया और सब जनों के कष्टों को दूर किया। सबकी कामना पूरी करनेवाले, सर्वदृष्टा, घट-घट को जाननेवाले प्रकट हुए। करोड़ों सूर्यों के तेज-सी आपके तन की आभा के प्रति हमारा अनुराग-प्रेम कम नहीं होता। (नीलांजना का) नृत्य देखकर आपको वैराग्य उपजा और तब आपने दीक्षा धारण कर परम-पद का ध्यान किया।हे आदि जगतगुरु ! हे आदि विधाता (विधान करनेवाले)! आप स्वर्ग व मुक्ति का मार्ग देनेवाले हैं अर्थात् मार्गदर्शक हैं । हे दीनदयाल, अब तो दया कीजिए और इस सेवक भूधरदास को अपने निकट स्थान दीजिए। विग = निकट, समीप। भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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