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________________ राग बंगला आयो रे बुढ़ापो मानी, सुधि बुधि बिसरानी ॥टेक॥ श्रवन की शक्ति घटी, चाल चालै अटपटी, देह लटी, भूख घटी, लोचन झरत पानी ॥१॥ आया रे.॥ दांतनकी पंक्ति टूटी, हाड़नकी संधि छूटी, कायाकी नगरि लूटी, जात नहिं पहिचानी॥२॥ आया रे.॥ बालोंने वरन फेरा, रोगने शरीर घेरा, पुत्रहू न आवे नेरा, औरोंकी कहां कहानी॥३॥ आया रे.॥ 'भूधर' समुझि अब, स्वहित करैगो कब, यह गति है है जब, तब पिछते है प्राणी॥४॥ आया रे.॥ वृद्धावस्था आने पर कवि कहता है कि हे अभिमानी ! अब बुढ़ापा आ गया है, जिसमें संभाल व समझ दोनों ही विस्मरित हो जाते हैं, डगमगा जाते हैं । अब कानों से कम सुनाई देने लगा है, सुनने की शक्ति घट गई है; पाँव लड़खड़ाने लगे हैं, संभलते नहीं हैं, देह साथ छोड़ने लगी है, भूख घट गई हैं और आँखों से पानी बहने लगा है। दाँतों की पंक्ति टूट गई है, हड्डियों के जोड़ ढीले होने लगे हैं, शरीर का ढाँचा - उसका रूप-सौन्दर्य बिगड़ने लगा है, वह अब पहचाना नहीं जाता है । बालों का रंग बदल गया है, वे (काले से) सफेद हो गए हैं, शरीर में भाँति-भाँति के रोग प्रकट होने लगे हैं, ऐसे में पुत्र भी समीप नहीं आता, औरों के बारे में तो क्या कहें? भूधरदास कहते हैं कि दूसरों की वृद्धावस्था को देखकर तो समझो, तुम अपना हित करी करोगे? जब शरीर की यह स्थिति हो जाती है तब प्राणी पछताता हैं पर तब पछताने से क्या हो? भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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