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तनिक-सी फाँस - काँटा यदि शरीर के किसी भी अंग में चुभ जाय, तो वह असुहावना लगता है । इसीप्रकार दूसरों के, पर के दुःख की वेदना भी अपने मन में समझो, अनुभव करो। श्री गुरुराज यही शिक्षा देते हैं कि किसी भी जीव को मत सताओ और मन-वचन-काय से अपने से भिन्न अन्यजनों के प्रति दया भाव रखिए, परोपकार कीजिए, उनके दुःख निवारण में सहयोगी बनिये ।
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करुणा जगत की माता है, जिस पर सबका भरोसा है । धिक्कार है उस निर्दय भावना को जिसे देखकर जीव सिहर उठता है, काँप जाता है।
सब लोकों में सभी कालों में और इस संसार के सभी दर्शनों में करुणा के प्रशंसक सराहे जाते हैं। यह गुणों का सार हैं। निर्दयी पुरुष भी करुणा की स्तुति करते हैं । उसकी निंदा कोई नहीं करता। परन्तु वे बिरले साहसी पुरुष हैं जो इसका पालन करते हैं, वे जगत में धन्य हैं। भूधरदास कहते हैं कि दूसरे के सुख में सुखी होता है वैसे ही दूसरे के दुःख में पीड़ा का अनुभव कर । हे वीर ! तू अपने मन के अनुकूल कार्य कर ।
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भंत भ्रान्ति । हियड़े मन में, हृदय में मायड़ी माता धीजै विश्वास, धीरज । कुंथु = केंचुआ जैसा एक छोटा-सा जन्तु ।
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भूधर भजन सौरभ