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________________ (६५) राग काफी मन हंस! हमारी लै शिक्षा हितकारी! श्रीभगवान चरन पिंजरे वसि, तजि विषयनिकी यारी॥ कुमति कागलीसौं मति राचो, ना वह जात तिहारी। कीजै प्रीत सुमति हंसीसौं, बुध हंसनकी प्यारी ॥१॥ मन.॥ । काहे को सेवत भव झीलर, दुखजलपूरित खारी। निज बल पंख पसारि उड़ो किन, हो शिव सरवरचारी॥२॥ मन.।। गुरुके वचन विमल मोती चुन, क्यों निज वान विसारी। है है सुखी सीख सुधि राखें, 'भूधर' भूलैं ख्वारी॥३॥ मन.॥ हे हंसरूपी मन, हे हंस के समान मन, हमारी हितकारी शिक्षा ले। तू विषय-कषाय की रुचि छोड़ दे और प्रभु के चरणकमलरूपी पिंजरे में अपना निवास कर, अर्थात् भगवान के श्रीचरणों में मन लगा, उन्हीं में रम जा। जैसे पक्षी पिंजरे से बाहर नहीं आता, उसी प्रकार तू चरण कमल के अलावा अन्यत्र अपना ध्यान न लगा। हे हंस ! कुमति - कौवे की भाँति हैं, वह तेरी जाति की नहीं है, उसमें अपना मन मत लगा। तू सुमतिरूपी हंसिनी से प्रीति कर जो ज्ञानो हंसों के मन को भाती है, प्यारी लगती है। तू इस भवरूपी झील में, जो दुःखरूपी खारे जल से भरी है, क्यों पड़ा है? तू तो मुक्तिरूपी सरोवर का निवासी हैं, तू अपने पंख पसारकर अपने पुरुषार्थ से उड़कर वहाँ क्यों नहीं जाता! हे हंस ! तू सदगुरु के पवित्र उपदेश के वचनरूपी मोती चुन । उन्हें न चुनकर तू अपना मोती चुगने का स्वभाव क्यों छोड़ रहा है। (मोती चुगना हंस का स्वभाव है)। भूधरदास कहते हैं - तू इस सीख को ध्यान में रखे तो तेरे सारे दुख मिट जायेंगे, समाप्त हो जायेंगे। हंस - नीर-क्षीर विवेकी, बुद्धिमान पक्षी। भूधर भजन सौरभ
SR No.090108
Book TitleBhudhar Bhajan Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTarachand Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages133
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size2 MB
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