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अभाव
गुणस्थान भाव व्युच्छित्ति भाव । अप्रमत्त (दे. संदृष्टि ।। 31 (दे. संदृष्टि ।। | 20 ( उपर्युक्त) विरत अपूर्वकरण (0) A( " ) | 23 (उपर्युक्त 20 + पीत,
पद्म लेश्या, शायो.
सम्यक्त्व) अनि. (दे. संदृष्टि ।)| A( दे. सदृष्टि 1) | 3 ( 23 उपर्युक्त ) सवेद
"
अनि. | " )|25 अवेद सूक्ष्मसा- | 21 " ) 22 (
"
पराय
उपशान्त | 21 "
|21
".
मोह
) | 26 ( उपर्युक्त 25 +3
लिंग) )। 29 (उपर्युक्त 26 +
कोष मान. माया
कषाय) .. ) 30 (उपर्युक्त 29 +
सराग संयम, लोम कषाय - औपशमिक
चारित्र) ) 31 (उपर्युक 30+
औपशमिक चारिच, औपशमिक सम्यक्त्व - क्षायिक चारिच )
शीण भीड़ 12
"
20
"
सयोग के क्ली
"
)
| 14 ( (शुक्ललेश्या सायिकदानादि 4 लब्धि , यायिक चारित्र, असिद्धत्व, मनुष्यगति, भव्यत्व)
371 औपशमिक भाव 2, चार ज्ञान, ३ दर्शन, क्षायोमशमिक सम्यक्त्व, सराग 'चारित्र, संयमासंयम,
झायो.5 लन्धि, कृष्णादि 5 लेश्याएं, लिंग 3, चार कषाय, तिथंचगति, मिथ्यात्व, असंयम, कुज्ञान 3, अज्ञान, अभव्यत्व)