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गुणस्थान भाव व्युच्छिति
भाव
अभाव
मिथ्यात्व 2 (मिथ्यात्व 25 (कुज्ञान 2, मायो. 16 (सम्यक्त्व 2, ज्ञान 3, अभव्यत्व) लन्धि 5, असंयम, अवधिदर्शन)
मनुष्यगति, कषाय 4, पुरुषवेद, 3 अशुभ लेश्या, अज्ञान असिद्धत्व, मिथ्यात्व,
पारिणामिक भाव 3) सासादन |4(कुज्ञान 2, 23 (उपर्युक्त 25- । (उपर्युक्त 6+ मिथ्यात्व,
कृष्ण, नील मिथ्यात्व, अमन्यत्व) |अभव्यत्व) लेश्या )
असंयत 12 (असंयम, 25 (वेदक, क्षायिक |6 (कुज्ञान 2, कृष्ण, कापोत लेश्या) सम्यक्रम 2, शान 3, | नाल संश्या, मध्याय,
दर्शन 3, वायोपशमिक अभव्यत्व) लब्धि 5, असंयम मनुष्यगति, कषाय, पुरुषवेद, कापोत लेश्या, अज्ञान, | असिद्धत्व, पारिणामिक भाव 2)
एवं भोगत्थीणं खाइयसम्मं च पुरिसवेदं च । ण हि थीवेदं विज्नदि सेसं जाणाहि पुन्वं व 169॥ एवं भोमस्त्रीणां क्षायिकसम्यक्त्वं च पुरुषवेदं च |
न हि, स्त्रीवेदो विद्यते शेष जानीहि पूर्वमिव ।। अन्वयार्थ - (एवं) इस प्रकार (भोगत्थीण) मोगभूमिज स्त्रियों के (खाइसम्म) क्षायिक सम्यक्त्व (च) और (पुरिसवेदं) पुरुषवेद (ण हि) नहीं होता है (थीवेद) स्त्री वेद (विज्जदि) होता है (सेस) शेष कथन (पुवं व) पूर्ववत् (जाणाहि) जानना चाहिए ।
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