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संदृष्टि नं. 64
केवलज्ञान भाव 14 केवलज्ञान में 14 भाव होते हैं जो इस प्रकार है - क्षायिक भाव 9, मनुष्यगति, शुक्ललेश्या, असिद्धत्व, जीवत्व, भव्यत्व गुणस्थान सयोग - अयोग के वली 2 होते हैं ।संदृष्टि इस प्रकार हैगुणस्थान भाव व्युच्छिति भाव । अभावं सयोग 1 शुक्ल | 14 (शायिक भाव 9, 10 के वली | लेश्या)
मनुष्यगति, शुक्ल लेश्या, असिद्धत्व,
जीवत्व, मव्यत्व) अयोग क्षायिक 13 (उपर्युक्त 14 में से 1 (शुक्ल लेश्या) केवली !दानादि शक्ल लेश्या कम करने
लब्धि , पर 13 शेष रहते हैं। असिद्धत्व, भव्यत्व, जीवत्व, मनुष्यमति)
ओदश्या भावा पुणणाणति दसणतियं च दाणादी। सम्मत्ततिअण्णाणति परिणामतियअसंजमेभावा ।।98|| औदयिका भावाः पुनः ज्ञानत्रिक दर्शनत्रिक च दानादयः। सम्यक्त्त्वत्रिक अज्ञानत्रिक पारिणामिकत्रिकं च असंयमे मावाः॥ अन्वयार्थ - (असंजमे) असंयत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में (ओदयाभावा) औदयिक सभी भाव (पुण) पुनः (णाणति) ज्ञानत्रिक अर्थात् मतिशान, श्रुत ज्ञान, अवधिज्ञान (सणतिय) चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधि दर्शन, (च) और (दाणादी) क्षायोपशमिक दानादिक 5लब्धियाँ (सम्मत्तति) तीनों सम्यक्त्व, (अण्णाणति) कुमति, कुश्रुत विभङ्गावधिज्ञान (परिणामति) पारिणामिक तीन (एदे) ये (भावा) भाव (संति) होते हैं।
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